भारत का सिंधु नदी संधि को रोकने का पाकिस्तान पर प्रभाव – एक विश्लेषण

 सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनाया गया था। इस संधि के अंतर्गत भारत ने छह नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) और रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ) को बांटने पर सहमति जताई। पूर्वी नदियों पर भारत को पूर्ण अधिकार मिला, जबकि पश्चिमी नदियों का मुख्य प्रवाह पाकिस्तान को मिला, हालांकि भारत कुछ हद तक इनके जल का उपयोग कर सकता है।

यदि भारत इस संधि को रोकने या स्थगित करने का निर्णय लेता है, तो इसके पाकिस्तान पर कई आयामों में प्रभाव पड़ सकते हैं।

2. पाकिस्तान पर संभावित प्रभाव:

(i) जल संकट और कृषि पर प्रभाव:
  • पाकिस्तान की लगभग 80% सिंचाई व्यवस्था सिंधु प्रणाली पर आधारित है।

  • सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का जल यदि सीमित या रोका गया तो पंजाब और सिंध के खेतों में सूखा पड़ सकता है।

  • खाद्य सुरक्षा को गहरी चुनौती मिलेगी, जिससे खाद्य आयात पर निर्भरता बढ़ेगी।

(ii) ऊर्जा संकट:
  • पाकिस्तान अपने हाइड्रोपावर संयंत्रों का एक बड़ा हिस्सा सिंधु नदी प्रणाली से प्राप्त जल पर आधारित करता है।

  • यदि भारत जल प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो बिजली उत्पादन में भारी कमी आएगी, जिससे ऊर्जा आपूर्ति बाधित होगी।

(iii) सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता:
  • जल संकट से लोगों में असंतोष बढ़ सकता है।

  • पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में जल को लेकर भारत विरोधी उग्र भावनाएं भड़क सकती हैं।

  • आतंरिक और सीमाई क्षेत्रों में तनाव या आंदोलन संभव हैं।

(iv) कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
  • पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ संधि उल्लंघन का आरोप लगा सकता है।

  • विश्व बैंक और अन्य संगठनों से हस्तक्षेप की मांग कर सकता है।

  • भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं।

3. भारत के दृष्टिकोण से संभावित रणनीतिक लाभ:

  • राजनीतिक दबाव का एक साधन: भारत संधि को निलंबित करने की धमकी देकर पाकिस्तान पर आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए दबाव बना सकता है।

  • पुनर्विचार का संकेत: यदि पाकिस्तान आतंकवाद या सीमा पार हिंसा में लिप्त रहता है, तो भारत यह जताने का अधिकार रखता है कि संधि को पुनः मूल्यांकन की आवश्यकता है।

4. संभावित चुनौतियाँ:

  • सिंधु जल संधि अंतरराष्ट्रीय संधि है, और इसका उल्लंघन करने पर भारत की वैश्विक छवि पर असर पड़ सकता है।

  • चीन, जो पाकिस्तान का सहयोगी है, ब्राह्मपुत्र या अन्य नदियों पर दबाव डाल सकता है।

  • विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत पर दबाव डाल सकते हैं।

5. निष्कर्ष:

भारत यदि सिंधु जल संधि को रोकता है या उसमें परिवर्तन करता है, तो इसका पाकिस्तान पर गंभीर जल, कृषि, ऊर्जा और राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा। यह पाकिस्तान के लिए एक भारी आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन सकती है। हालांकि भारत को भी अंतरराष्ट्रीय कानून, नैतिकता और क्षेत्रीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए ही कोई कदम उठाना चाहिए। यह विषय केवल रणनीतिक नहीं बल्कि मानवीय और पारिस्थितिक भी है।

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