महाकुंभ 2025 के हठ योगी
महाकुंभ 2025 के हठ योगी
हठ योग, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण योग पद्धति है जो शारीरिक और मानसिक संयम को बढ़ाने के लिए विभिन्न आसनों, प्राणायाम और साधनाओं का उपयोग करती है। हठ योग का उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना, आत्मा के साथ एकता प्राप्त करना और उच्चतम चेतना की अवस्था को प्राप्त करना है। यह पद्धति विशेष रूप से शारीरिक स्थिरता और ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने पर जोर देती है।
हठ योग का इतिहास और उगम
हठ योग का संदर्भ प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में मिलता है, जिनमें इसे आत्मज्ञान और आत्मा के साथ मिलन के साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और मानसिक शांति को प्राप्त करना है। हठ योग के बारे में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हठ योग प्रदीपिका (Hatha Yoga Pradipika) है, जिसे स्वामी स्वात्माराम द्वारा लिखा गया। यह ग्रंथ हठ योग के सिद्धांतों, आसनों, प्राणायामों और उनके लाभों को विस्तार से समझाता है।
हठ योग के प्रमुख ग्रंथ
हठ योग प्रदीपिका - यह ग्रंथ हठ योग के प्राचीनतम और सबसे प्रसिद्ध ग्रंथों में से एक है। इसमें हठ योग के आसनों, प्राणायामों, मुद्राओं, और ध्यान की तकनीकों का वर्णन है। इसमें चार भाग होते हैं: आसन, प्राणायाम, मुद्राएँ और ध्यान।
घेरंड संहिता - यह ग्रंथ भी हठ योग की एक महत्वपूर्ण कृति है, जिसे स्वामी घेरंड ने लिखा। इसमें योग की विविध विधियों और प्राचीन साधनाओं का वर्णन किया गया है, जिसमें शरीर, मन, और आत्मा के संयोजन के लिए निर्देश दिए गए हैं।
शिव संहिता - शिव संहिता में हठ योग की विभिन्न विधियों का विस्तृत वर्णन है। इस ग्रंथ में शिव जी ने अपने शिष्य से हठ योग के बारे में बताया। यह ग्रंथ प्राचीन योगियों की पद्धतियों और तंत्र के बारे में बहुत जानकारी प्रदान करता है।
हठ योग के प्रमुख सिद्धांत
आसन - हठ योग में शरीर को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न आसन किए जाते हैं, जैसे पद्मासन, शवासन, त्रिकोणासन आदि। इन आसनों का उद्देश्य शरीर की स्थिति को स्थिर और आरामदायक बनाना है, जिससे ध्यान की स्थिति में आसानी हो सके।
प्राणायाम - प्राणायाम का अर्थ है श्वास की क्रियाओं को नियंत्रित करना। हठ योग में प्राणायाम के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे अनुलोम विलोम, कपालभाती, भस्त्रिका आदि, जो मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं।
मुद्राएँ - मुद्राओं का उद्देश्य शरीर की ऊर्जा को सही दिशा में प्रवाहित करना है। यह विभिन्न अंगों को विशेष स्थितियों में रखते हुए शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं।
ध्यान - हठ योग का मुख्य उद्देश्य ध्यान में स्थिरता प्राप्त करना है। ध्यान द्वारा साधक अपनी मानसिक स्थिति को संतुलित करता है और आत्मा के साथ मिलन की स्थिति प्राप्त करता है।
महंत महाकाल गिरी जी
इंद्र गिरी बाबा
प्रयागराज का कुंभ मेला एक अद्वितीय धार्मिक आयोजन है, जहाँ संत-महात्मा और विभिन्न अखाड़ों के प्रमुख हर बार बड़े धूमधाम से शामिल होते हैं। इस बार भी कुछ ऐसे हठयोगी संत पहुंचे हैं जिनकी साधना और तपस्या ने सभी को चौंका दिया है। इनमें से एक प्रमुख हठयोगी संत हैं इंद्र गिरी बाबा, जो कुंभ मेले में अपने अद्वितीय हठयोग के कारण चर्चा में हैं।
कोरोना महामारी के बाद से इंद्र गिरी बाबा का साधना एक नई दिशा में बढ़ी है। बाबा को अब अपनी सांस के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता होती है, और उन्होंने अपने हठयोग की यह विशेष पद्धति बनाई है, जिसमें वह ऑक्सीजन पाइप का सहारा लेकर भी अपनी साधना को निरंतर जारी रखते हैं। बावजूद इसके, इंद्र गिरी बाबा का कहना है कि सब कुछ ठीक है और उनका हठयोग बिना किसी रुकावट के जारी रहेगा। उनका विश्वास और दृढ़ संकल्प उन्हें इस कठिन परिस्थिति में भी शारीरिक रूप से निर्बाध साधना करने की शक्ति देता है।
इंद्र गिरी बाबा का यह दृढ़ निश्चय एक अडिग उदाहरण है कि साधना और तपस्या में समर्पण किसी भी स्थिति में नहीं रुकता। वह भगवान का भजन करने, शाही स्नान करने और जन कल्याण के लिए अपना हठयोग निरंतर जारी रखने का संकल्प ले चुके हैं। उनका यह हठयोग न केवल अपने स्वास्थ्य को चुनौती देने वाली एक अद्भुत तपस्या का प्रतीक है, बल्कि यह मानवता और श्रद्धा के प्रति उनकी निष्ठा को भी दर्शाता है।
इंद्र गिरी बाबा का यह उदाहरण हमें यह सिखाता है कि यदि किसी कार्य को करने का इरादा मजबूत हो, तो कोई भी स्थिति या बाधा उसे रोक नहीं सकती। यह साधना उनके लिए एक जीवन का मिशन बन चुकी है, जो दूसरों को भी प्रेरणा देती है।
गीतानंद गिरी रुद्राक्ष वाले बाबा
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेला 2025 में विभिन्न संत महात्माओं और तपस्वियों का आना जारी है। इस वर्ष के महाकुंभ में एक संत की तपस्या ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है, जिनके सिर पर एक विशाल रुद्राक्ष का पहाड़ रखा हुआ है। यह संत गीतानंद गिरी रुद्राक्ष वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं और वह अपनी अद्वितीय तपस्या के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।
12 साल की कठिन तपस्या: गीतानंद गिरी बाबा का कहना है कि यह विशाल रुद्राक्ष उनके 12 वर्षों की कठिन तपस्या का परिणाम है। उन्होंने राष्ट्र और सनातन धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा और निष्ठा के प्रतीक के रूप में यह कसम खाई थी कि वह 925 मालाओं में 1.25 लाख रुद्राक्ष पूरे करेंगे। उनका उद्देश्य इन रुद्राक्षों के माध्यम से अपनी साधना को और मजबूत बनाना था।
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