UPPSC Mains-2023 Essay solution

 

UPPSC Mains-2023 Essay solution
Section –A

Q-1 Role of literature in character building. चरित्र निर्माण में साहित्य की भूमिका

Answer-

साहित्य मानव समाज का आईना है। यह केवल हमारी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण में भी गहरा प्रभाव डालता है। चरित्र निर्माण का अर्थ है व्यक्ति के भीतर नैतिक, मानसिक, और सामाजिक गुणों का विकास करना। साहित्य, अपने विविध रूपों में, हमें जीवन के उच्च आदर्शों से परिचित कराता है और हमारे चरित्र को सशक्त बनाने में सहायक होता है। महात्मा गांधी ने कहा था, "साहित्य का उद्देश्य मनुष्य के चरित्र को ऊंचा उठाना है।"

साहित्य का समाज और व्यक्ति पर प्रभाव

साहित्य का मुख्य उद्देश्य मानव समाज को शिक्षित और प्रेरित करना है। यह व्यक्ति को सही और गलत का भेद सिखाता है और उसे अपने जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्गदर्शन प्रदान करता है। साहित्य में लिखी कहानियाँ, कविताएँ, नाटक और उपन्यास हमारे भीतर नैतिक मूल्यों, सहानुभूति, और सहिष्णुता जैसे गुणों का बीजारोपण करते हैं।

भारतीय साहित्य में चरित्र निर्माण के उदाहरण प्राचीन काल से ही मिलते हैं। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य हमें धर्म, कर्तव्य, और सत्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाते हैं। रामायण में भगवान राम का जीवन त्याग, सहनशीलता, और आदर्श चरित्र का प्रतीक है। महाभारत में युधिष्ठिर का सत्य के प्रति समर्पण हमें सिखाता है कि चरित्र निर्माण के लिए सत्यनिष्ठा कितनी महत्वपूर्ण है।

साहित्य और नैतिक मूल्य

नैतिकता चरित्र निर्माण का आधार है। साहित्य नैतिक मूल्यों को व्यक्त करने का सबसे प्रभावी माध्यम है। कबीर, तुलसीदास, और रहीम जैसे कवियों की रचनाएँ व्यक्ति को ईमानदारी, दया, और सच्चाई का महत्व समझाती हैं। कबीर ने लिखा है:
"
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।"
यह पंक्ति हमें बताती है कि सत्य और ईमानदारी हमारे जीवन के मूलभूत स्तंभ होने चाहिए।

साहित्य समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर कर व्यक्ति को जागरूक करता है। प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे "गोदान" और "ईदगाह" गरीबी, अन्याय, और मानवता की सच्चाई को उजागर करती हैं। इन कहानियों के पात्र हमारे भीतर करुणा और सहानुभूति जैसे गुणों को जागृत करते हैं, जो चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं।

साहित्य और आत्म-विकास

साहित्य व्यक्ति को आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम किसी पुस्तक को पढ़ते हैं, तो हम अपने आप को उसमें प्रतिबिंबित पाते हैं। यह आत्मनिरीक्षण हमें अपने चरित्र को सुधारने और बेहतर बनाने का अवसर प्रदान करता है।

रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएँ हमें आत्मा की गहराई में झाँकने और जीवन के उच्च उद्देश्यों को समझने की प्रेरणा देती हैं। उनकी काव्यात्मक भाषा और विचारशीलता पाठकों को अपने भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानने का अवसर देती है।

आधुनिक साहित्य और चरित्र निर्माण

आधुनिक साहित्य भी चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में जब समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है, साहित्य व्यक्ति को सच्चाई, ईमानदारी, और अनुशासन का महत्व सिखाता है।

साहित्यकार जैसे मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, और हरिवंश राय बच्चन ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। उनकी रचनाएँ व्यक्ति के भीतर आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, और सहिष्णुता जैसे गुणों को प्रोत्साहित करती हैं।

चरित्र निर्माण में साहित्य की सीमाएँ

यद्यपि साहित्य चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, परंतु यह तभी प्रभावी होता है जब व्यक्ति उसमें वर्णित शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाता है। केवल साहित्य पढ़ने से चरित्र निर्माण नहीं हो सकता; इसके लिए शिक्षित समाज और नैतिक वातावरण की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

चरित्र निर्माण में साहित्य की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। साहित्य मानव जीवन को दिशा प्रदान करता है, उसे नैतिकता, सच्चाई, और सहानुभूति जैसे गुणों से समृद्ध करता है। जैसा कि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था,
"
हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी; आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्याएँ सभी।"
यह पंक्ति इस बात को रेखांकित करती है कि साहित्य हमें आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार के लिए प्रेरित करता है।

इसलिए, साहित्य को जीवन का अभिन्न अंग बनाकर हम केवल अपने चरित्र का निर्माण कर सकते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। साहित्य का आदान-प्रदान व्यक्ति और समाज, दोनों के चरित्र को मजबूत करने की दिशा में एक सार्थक कदम है।

Q- 2 The problem of old peoples in metropolitan cities. महानगरों में वृद्धों की समस्या

Answer-

महानगरों में वृद्धों की समस्याएँ समाज के बदलते स्वरूप और पारिवारिक संरचना में रहे बदलाव का परिणाम हैं। जैसे-जैसे समाज में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का प्रसार हुआ है, परिवारों का ढांचा संयुक्त से एकल में परिवर्तित हो गया है। इस बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव वृद्धजनों पर पड़ा है। वे जो कभी परिवार के केन्द्र में हुआ करते थे, आज उपेक्षा, अकेलापन, और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।

महानगरों में वृद्धों की समस्याएँ

1. अकेलापन और उपेक्षा

महानगरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने कामकाज और व्यक्तिगत जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि वृद्धजनों के साथ समय बिताना उनके लिए मुश्किल हो गया है। परिणामस्वरूप, वृद्धजन अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं।
सामाजिक संरचना में बदलाव के कारण बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं, जिससे वृद्धजन मानसिक और भावनात्मक रूप से आहत होते हैं।

2. स्वास्थ्य समस्याएँ

महानगरों में वृद्धजनों को स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है। महंगे चिकित्सा खर्च, नियमित स्वास्थ्य जांच की कमी, और शारीरिक कमजोरी के कारण वे अनेक बीमारियों का सामना करते हैं। इसके अतिरिक्त, बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ जैसे हृदय रोग, मधुमेह, और अवसाद आम हो जाते हैं।

3. आर्थिक असुरक्षा

महानगरों में रहने का खर्च अत्यधिक होता है। पेंशन या आर्थिक सहायता मिलने के कारण वृद्धजनों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो वृद्धजन कामकाजी जीवन में थे, वे भी सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक असुरक्षा का अनुभव करते हैं।

4. सुरक्षा का अभाव

महानगरों में वृद्धजन अपराध का शिकार भी हो सकते हैं। अकेले रहने वाले वृद्धजनों के लिए चोरी, धोखाधड़ी, और अन्य अपराधों का जोखिम अधिक होता है।

5. सामाजिक अलगाव

परिवार और समाज से अलग-थलग हो जाने के कारण वृद्धजन सामाजिक अलगाव का अनुभव करते हैं। इस समस्या को आधुनिक तकनीकी साधनों ने और अधिक बढ़ा दिया है, क्योंकि वृद्धजन डिजिटल युग के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते।

 

वृद्धजनों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ

सरकार ने वृद्धजनों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएँ और नीतियाँ लागू की हैं। इनका उद्देश्य उनकी आर्थिक, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

1. राष्ट्रीय वृद्धजन नीति, 1999 (National Policy on Older Persons)

1999 में लागू की गई इस नीति का उद्देश्य वृद्धजनों के लिए सम्मानजनक जीवन, आर्थिक सुरक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करना है। इस नीति के तहत वृद्धजनों को रोजगार, सामाजिक भागीदारी, और उनके अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।

2. वृद्धावस्था पेंशन योजना (Indira Gandhi National Old Age Pension Scheme)

यह योजना वृद्धजनों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। 60 वर्ष से अधिक आयु के वृद्धजन, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, इस योजना के तहत मासिक पेंशन प्राप्त कर सकते हैं।

3. प्रवर्तन और रखरखाव अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007)

यह अधिनियम बच्चों और वारिसों को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है कि वे अपने वृद्ध माता-पिता और दादा-दादी की देखभाल करें। इस कानून के तहत वृद्धजन अपनी देखभाल के लिए शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

4. आरोग्य नीतियाँ और योजनाएँ

सरकार ने वृद्धजनों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए विशेष योजनाएँ चलाई हैं, जैसे:

  • राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (National Programme for Health Care of the Elderly - NPHCE): इस कार्यक्रम का उद्देश्य वृद्धजनों के लिए प्राथमिक, माध्यमिक, और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
  • सरकारी अस्पतालों में वृद्धजनों के लिए मुफ्त या रियायती दर पर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।

5. वरिष्ठ नागरिकों के लिए कर लाभ

वृद्धजनों को आयकर में विशेष छूट प्रदान की जाती है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

6. वरिष्ठ नागरिक केंद्र और वृद्धाश्रम

सरकार और गैर-सरकारी संगठन वृद्धजनों के लिए वृद्धाश्रम और वरिष्ठ नागरिक केंद्र चलाते हैं। ये केंद्र वृद्धजनों को सामाजिक जुड़ाव, स्वास्थ्य सुविधाएँ, और मनोरंजन प्रदान करते हैं।

 

समस्या का सामाजिक समाधान

1. पारिवारिक भूमिका

वृद्धजनों की समस्याओं का सबसे प्रभावी समाधान परिवार से ही शुरू होता है। बच्चों को यह समझना चाहिए कि माता-पिता ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उनके लिए समर्पित किया है। उनके प्रति सम्मान और देखभाल का भाव रखना प्रत्येक परिवार सदस्य का कर्तव्य है।

2. सामाजिक जागरूकता

समाज में वृद्धजनों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा के माध्यम से बच्चों को वृद्धजनों का महत्व समझाया जा सकता है।

3. गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका

गैर-सरकारी संगठन (NGOs) वृद्धजनों की सहायता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे वृद्धजनों के लिए स्वास्थ्य शिविर, काउंसलिंग, और अन्य सहायता सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं।

4. तकनीकी साक्षरता

महानगरों में वृद्धजनों को तकनीकी साक्षर बनाने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। इससे वे डिजिटल दुनिया से जुड़ सकते हैं और अपने अकेलेपन को कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष

महानगरों में वृद्धों की समस्याएँ एक गहन सामाजिक और नैतिक मुद्दा हैं। इन समस्याओं का समाधान केवल सरकारी योजनाओं और नीतियों से नहीं हो सकता; इसके लिए समाज और परिवार को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था:
"
किसी समाज की महानता इस बात से आंकी जाती है कि वह अपने वृद्धजनों के साथ कैसा व्यवहार करता है।"

इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे वृद्धजन केवल भौतिक रूप से सुरक्षित हों, बल्कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक संतोष भी प्राप्त हो। उनका अनुभव और ज्ञान समाज की अमूल्य धरोहर है, जिसे संजोना और सम्मानित करना हमारी जिम्मेदारी है।

Q-3 Meaning of G-20 leadership for India भारत के लिए G-20 के नेतृत्व के निहितार्थ

Answer-

भारत ने वर्ष 2023 में G-20 की अध्यक्षता प्राप्त कर वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका को मजबूती से स्थापित किया। यह अवसर केवल भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को प्रदर्शित करता है, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान में उसके योगदान की भी पुष्टि करता है। G-20, जो दुनिया के 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, वैश्विक आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए एक प्रभावी मंच है। इस लेख में, हम भारत के लिए G-20 के नेतृत्व के निहितार्थों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

 

G-20 का परिचय

G-20 (ग्रुप ऑफ ट्वेंटी) दुनिया के 20 प्रमुख देशों का एक समूह है, जिसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल हैं। इसका गठन 1999 में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया था।
इस समूह के सदस्य देशों में अमेरिका, चीन, भारत, जापान, जर्मनी, और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, जो विश्व की 85% GDP, 75% व्यापार और 60% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।

 

भारत की G-20 अध्यक्षता का महत्व

1. वैश्विक नेतृत्व में उभरता भारत

भारत की G-20 अध्यक्षता ने उसे एक महत्वपूर्ण वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है। यह अवसर भारत को वैश्विक मंच पर अपनी प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे "वसुधैव कुटुंबकम्" (दुनिया एक परिवार है) के दृष्टिकोण से जोड़ते हुए वैश्विक समृद्धि और शांति के लिए एकजुट प्रयास करने का आह्वान किया।

2. आर्थिक सुधार और विकास

भारत को अपनी अध्यक्षता के माध्यम से वैश्विक आर्थिक सुधार के एजेंडे को बढ़ावा देने का अवसर मिला। डिजिटल अर्थव्यवस्था, हरित ऊर्जा, और समावेशी विकास जैसे मुद्दों पर भारत ने अपनी नीतियों को प्रस्तुत किया।

3. वैश्विक चुनौतियों का समाधान

आज की दुनिया जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक स्वास्थ्य संकट, और भू-राजनीतिक तनाव जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। भारत ने G-20 के नेतृत्व के दौरान इन मुद्दों को हल करने के लिए स्थायी और समावेशी समाधानों पर जोर दिया।

4. विकासशील देशों की आवाज

G-20 का नेतृत्व करते हुए भारत ने विकासशील देशों की चिंताओं और हितों को प्रमुखता से उठाया। ग्लोबल साउथ (Global South) के देशों के मुद्दों को सामने लाने के लिए भारत ने इस मंच का उपयोग किया। यह दृष्टिकोण वैश्विक असमानता को कम करने में सहायक हो सकता है।

 

G-20 नेतृत्व के निहितार्थ

1. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और सॉफ्ट पावर में वृद्धि

भारत की G-20 अध्यक्षता ने उसकी सॉफ्ट पावर को मजबूत किया है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति, और बहुलतावादी दृष्टिकोण को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने का यह अवसर एक नई वैश्विक पहचान स्थापित करने में सहायक है।

2. वैश्विक आर्थिक और व्यापारिक हितों को बढ़ावा

भारत ने G-20 के दौरान व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को एक स्थिर और आकर्षक गंतव्य के रूप में प्रस्तुत किया। यह केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका को भी मजबूत करेगा।

3. तकनीकी नेतृत्व

डिजिटल अर्थव्यवस्था और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में भारत की क्षमताओं को G-20 के माध्यम से प्रदर्शित करने का अवसर मिला। डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure) और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) जैसी पहल वैश्विक मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं।

4. हरित ऊर्जा और सतत विकास

G-20 के नेतृत्व के दौरान, भारत ने हरित ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और हरित हाइड्रोजन पर भारत के प्रयास वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में योगदान कर सकते हैं।

5. सुरक्षा और शांति के प्रयास

भारत ने वैश्विक सुरक्षा और भू-राजनीतिक तनावों को हल करने के लिए G-20 का उपयोग किया। भारत का "नो फर्स्ट यूज" नीति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का दृष्टिकोण वैश्विक शांति के लिए एक मार्गदर्शक बन सकता है।

 

चुनौतियाँ और समाधान

1. विकासशील और विकसित देशों के बीच संतुलन

G-20 में विकसित और विकासशील देशों के बीच प्राथमिकताओं का संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। भारत ने ग्लोबल साउथ की चिंताओं को प्राथमिकता देकर इस असंतुलन को दूर करने का प्रयास किया।

2. भू-राजनीतिक तनाव

रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-अमेरिका प्रतिस्पर्धा, और वैश्विक सुरक्षा मुद्दे G-20 के प्रभाव को सीमित कर सकते हैं। भारत ने इन मुद्दों पर संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

3. सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) का कार्यान्वयन

सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वित्तीय संसाधनों और नीतियों की आवश्यकता है। भारत ने G-20 के माध्यम से विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण और तकनीकी सहायता पर बल दिया।

 

G-20 अध्यक्षता के दीर्घकालिक प्रभाव

भारत की G-20 अध्यक्षता ने उसे एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया है। यह केवल भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि विश्व मंच पर उसकी भूमिका को भी सुदृढ़ करेगा।
यह नेतृत्व भारत को वैश्विक समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करेगा, जिससे उसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और भी बढ़ेगा।

निष्कर्ष

भारत के लिए G-20 की अध्यक्षता केवल एक सम्मान का विषय है, बल्कि यह वैश्विक नेतृत्व में उसकी भूमिका को पहचानने का एक प्रतीक भी है। इस मंच के माध्यम से, भारत ने आर्थिक विकास, हरित ऊर्जा, डिजिटल परिवर्तन, और वैश्विक शांति जैसे मुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
G-20
की अध्यक्षता ने भारत को वैश्विक मंच पर अपनी क्षमताओं और दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने का अवसर दिया है। यह नेतृत्व केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक नई दिशा तय करेगा। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था,
"
आप दुनिया में जो बदलाव देखना चाहते हैं, वह बदलाव स्वयं बनें।"
भारत ने G-20 के माध्यम से इसी दृष्टिकोण को अपनाते हुए वैश्विक बदलाव का नेतृत्व किया है।

Section-B

Q-1 Space science and India अंतरिक्ष विज्ञान और भारत

Answer-

भारत ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत एक साधारण और सीमित संसाधनों वाले देश के रूप में की थी। लेकिन आज, भारत अंतरिक्ष विज्ञान में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेतृत्व में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में केवल उपलब्धियों का एक लंबा सफर तय किया है, बल्कि अपने सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर अपना एक अलग स्थान बनाया है।

 

अंतरिक्ष विज्ञान का महत्व

अंतरिक्ष विज्ञान केवल ग्रहों, उपग्रहों और ब्रह्मांड की खोज तक सीमित नहीं है। यह विज्ञान विभिन्न क्षेत्रों में मानवीय जीवन को बेहतर बनाने में सहायक है।

  1. संचार और संचार तकनीक: उपग्रहों के माध्यम से संचार क्रांति संभव हुई है। मोबाइल, टेलीविजन, इंटरनेट, और GPS जैसे साधन अंतरिक्ष विज्ञान की देन हैं।
  2. मौसम पूर्वानुमान: अंतरिक्ष विज्ञान के माध्यम से मौसम की जानकारी प्राप्त करना, आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना, और कृषि में मदद करना संभव हुआ है।
  3. राष्ट्रीय सुरक्षा: अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग सीमाओं की निगरानी, सैन्य संचार और निगरानी उपग्रहों के लिए किया जाता है।
  4. शैक्षणिक और वैज्ञानिक अनुसंधान: ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने और नई तकनीकों को विकसित करने के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का उपयोग किया जाता है।
  5. विकास और सामाजिक प्रभाव: अंतरिक्ष विज्ञान का उपयोग विकास योजनाओं को लागू करने और सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजने के लिए किया जाता है।

 

भारत में अंतरिक्ष विज्ञान का इतिहास

1. प्रारंभिक युग

भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत 1960 के दशक में हुई। 1962 में, भारतीय राष्ट्रीय समिति फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) का गठन किया गया।
1963
में, थुंबा से पहला साउंडिंग रॉकेट छोड़ा गया। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आधारशिला थी।

2. इसरो की स्थापना (1969)

1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना हुई। यह डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व में हुआ, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।
इसरो का उद्देश्य अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग राष्ट्रीय विकास के लिए करना था।

3. प्रारंभिक मिशन

1975 में, भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया। यह भारत की अंतरिक्ष यात्रा का पहला महत्वपूर्ण कदम था।
1980
में, भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपण यान (SLV-3) के माध्यम से रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।

 

अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की उपलब्धियाँ

1. चंद्रमा मिशन: चंद्रयान

  • चंद्रयान-1 (2008): यह भारत का पहला चंद्र मिशन था। इसने चंद्रमा की सतह पर पानी की उपस्थिति का पता लगाया।
  • चंद्रयान-2 (2019): इस मिशन में भारत ने ऑर्बिटर, लैंडर, और रोवर भेजे। हालाँकि लैंडर सफलतापूर्वक नहीं उतर पाया, लेकिन ऑर्बिटर ने महत्वपूर्ण डेटा प्रदान किया।
  • चंद्रयान-3 (2023): इस मिशन में भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की, जिससे भारत ऐसा करने वाला पहला देश बना।

2. मंगल मिशन: मंगलयान (MOM)

2013 में भारत ने अपना पहला मंगल मिशन लॉन्च किया। यह मिशन "मार्स ऑर्बिटर मिशन" (MOM) के नाम से जाना जाता है।

  • भारत पहला ऐसा देश बना जिसने पहली ही कोशिश में मंगल की कक्षा में उपग्रह भेजा।
  • इस मिशन की लागत भी अन्य देशों की तुलना में बहुत कम थी।

3. अन्य उपग्रह मिशन

भारत ने INSAT और GSAT जैसे संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित किया, जो संचार, प्रसारण, और मौसम पूर्वानुमान में सहायक हैं।
RISAT
और CARTOSAT जैसे उपग्रह पृथ्वी की निगरानी और मानचित्रण में उपयोगी हैं।

4. पीएसएलवी और जीएसएलवी

भारत ने अपने प्रक्षेपण यानों (Launch Vehicles) को विकसित किया है:

  • पीएसएलवी (PSLV): यह प्रक्षेपण यान विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
  • जीएसएलवी (GSLV): यह भारी उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए उपयोगी है।

5. विश्व रिकॉर्ड

2017 में, भारत ने एक ही प्रक्षेपण में 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर विश्व रिकॉर्ड बनाया।

6. मानव अंतरिक्ष मिशन (गगनयान)

भारत "गगनयान" मिशन के तहत 2025 तक अपने पहले मानव अंतरिक्ष मिशन को लॉन्च करने की योजना बना रहा है। यह भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करेगा जिन्होंने मानव को अंतरिक्ष में भेजा है।

7. सूर्य मिशन: आदित्य-L1

भारत ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-L1 मिशन लॉन्च किया। यह मिशन सूर्य की बाहरी परतों का अध्ययन करेगा।

 

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के निहितार्थ

1. वैश्विक पहचान

भारत ने अपनी अंतरिक्ष उपलब्धियों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। यह भारत को उभरती हुई अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है।

2. विकासशील देशों के लिए प्रेरणा

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। भारत ने सीमित संसाधनों के साथ अंतरिक्ष में सफलता प्राप्त कर दिखाया है।

3. आर्थिक लाभ

  • भारत ने व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में खुद को एक विश्वसनीय सेवा प्रदाता के रूप में स्थापित किया है।
  • यह भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है।

4. राष्ट्रीय सुरक्षा

अंतरिक्ष तकनीक ने भारत की सुरक्षा को मजबूत किया है।

  • निगरानी उपग्रह सीमाओं पर नजर रखने में मदद करते हैं।
  • मिसाइल प्रणाली और रक्षा तकनीक को भी अंतरिक्ष विज्ञान से लाभ मिला है।

5. सामाजिक प्रभाव

अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और आपदा प्रबंधन के लिए किया जा रहा है।

 

चुनौतियाँ और समाधान

1. वित्तीय सीमाएँ

अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए धन की आवश्यकता होती है। लेकिन भारत ने अपने मिशनों को कम लागत में सफलतापूर्वक पूरा कर इस चुनौती को अवसर में बदला है।

2. तकनीकी चुनौतियाँ

अंतरिक्ष विज्ञान में उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होती है। भारत को अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश करना होगा।

3. वैश्विक प्रतिस्पर्धा

अंतरिक्ष के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को और अधिक प्रभावी बनाना होगा।

निष्कर्ष

 

भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की है। यह देश की वैज्ञानिक क्षमता, दूरदृष्टि, और मेहनत का परिणाम है। अंतरिक्ष कार्यक्रम ने केवल भारत को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाई है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास में भी योगदान दिया है।

जैसा कि डॉ. .पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था,
"
आकाश की ओर देखो, हम अकेले नहीं हैं। पूरा ब्रह्मांड हमारे विकास और प्रगति के लिए काम कर रहा है।"

भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में यह सिद्ध कर दिया है कि सीमित संसाधन भी बाधा नहीं हैं, यदि लक्ष्य स्पष्ट और प्रयास सच्चे हों। भविष्य में, भारत निश्चित रूप से अंतरिक्ष विज्ञान में और भी ऊँचाइयाँ छुएगा।

Q-2 New possibilities in the agricultural sector. कृषि क्षेत्र में नई संभावनाएँ

Answer-

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ देश की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। कृषि केवल भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि यह देश के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी गहराई से जुड़ी हुई है। हालांकि, समय के साथ कृषि क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जैसे भूमि की उर्वरता में कमी, जलवायु परिवर्तन, जल संकट, और किसानों की आर्थिक कठिनाइयाँ। लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, कृषि क्षेत्र में कई नई संभावनाएँ उभर रही हैं, जो इस क्षेत्र को पुनर्जीवित कर सकती हैं और इसे भविष्य के लिए अधिक टिकाऊ बना सकती हैं।

 

कृषि क्षेत्र में नई संभावनाएँ

1. डिजिटल कृषि (Smart Agriculture)

डिजिटल तकनीक और डेटा-आधारित उपकरणों का उपयोग कृषि को अधिक सटीक और कुशल बना रहा है।

  • ड्रोन तकनीक: ड्रोन का उपयोग फसल की निगरानी, कीटनाशकों का छिड़काव, और फसल की सेहत का आकलन करने के लिए किया जा रहा है।
  • सेंसर और IoT: खेतों में लगाए गए सेंसर मिट्टी की नमी, तापमान, और फसल की स्थिति के बारे में डेटा प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • कृषि ऐप्स: कई मोबाइल ऐप किसानों को मौसम की जानकारी, बाजार मूल्य, और उन्नत तकनीकों के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।

2. जैविक खेती (Organic Farming)

आजकल जैविक खेती की माँग बढ़ रही है क्योंकि लोग रसायन मुक्त और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

  • जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे भूमि और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचता।
  • जैविक उत्पादों की उच्च बाजार कीमत किसानों को आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है।

3. सटीक कृषि (Precision Agriculture)

सटीक कृषि का उद्देश्य सीमित संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है।

  • यह तकनीक GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) और GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) का उपयोग कर फसल उत्पादन को अधिकतम करती है।
  • सटीक कृषि से पानी, उर्वरक, और कीटनाशकों के उपयोग में कमी आती है, जिससे लागत कम होती है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचता।

4. कृषि यंत्रीकरण (Farm Mechanization)

  • कृषि में मशीनीकरण से श्रम की लागत कम होती है और उत्पादकता बढ़ती है।
  • आधुनिक कृषि उपकरण जैसे ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर, और सिंचाई मशीनें किसानों के काम को तेज और आसान बना रही हैं।

5. सस्टेनेबल खेती (Sustainable Farming)

सस्टेनेबल खेती का उद्देश्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना कृषि को टिकाऊ बनाना है।

  • इसमें फसल चक्र, मिश्रित खेती, और जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।
  • यह तकनीक प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करती है और भूमि की उर्वरता को बनाए रखती है।

6. सिंचाई में नवाचार (Irrigation Innovations)

जल संकट को देखते हुए, आधुनिक सिंचाई प्रणालियाँ जैसे ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम अपनाई जा रही हैं।

  • ये प्रणालियाँ पानी की बचत करती हैं और फसल उत्पादन को बढ़ाती हैं।

7. कृषि और बागवानी का एकीकरण (Agri-Horticulture Integration)

कृषि के साथ बागवानी को जोड़कर किसानों को अधिक लाभ कमाने का अवसर मिलता है।

  • फल, सब्जी, और फूलों की खेती का एकीकृत मॉडल किसानों की आय को दोगुना कर सकता है।

8. कृषि-तकनीक (Agri-Tech)

कृषि में स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी का प्रवेश हो रहा है।

  • फूड प्रोसेसिंग: फसल कटाई के बाद प्रसंस्करण से उत्पादों का मूल्य बढ़ता है।
  • -कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म: किसान सीधे उपभोक्ताओं को अपने उत्पाद बेच सकते हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाती है।

9. बायोफ्यूल और ऊर्जा उत्पादन

  • कृषि अवशेषों से बायोफ्यूल का उत्पादन करके ऊर्जा संकट का समाधान किया जा सकता है।
  • गन्ना, मक्का, और जेट्रोफा जैसी फसलों का उपयोग बायोफ्यूल के लिए किया जा रहा है।

10. जलवायु-लचीली खेती (Climate-Resilient Farming)

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए, वैज्ञानिक नई किस्म की फसलें विकसित कर रहे हैं जो सूखा, बाढ़, और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन कर सकें।

 

सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ

भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार और संभावनाओं को बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं:

  1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने की योजना।
  2. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: किसानों को फसल क्षति के खिलाफ बीमा सुरक्षा प्रदान करना।
  3. पर ड्रॉप मोर क्रॉप: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
  4. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: भूमि की उर्वरता का आकलन कर किसानों को सही जानकारी प्रदान करना।
  5. -नाम (e-NAM): किसानों को एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करना, जहाँ वे अपने उत्पादों को देशभर में बेच सकते हैं।
  6. हरित क्रांति-कृषि क्षेत्र विकास योजना: नई तकनीकों और नवाचारों को अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना।

 

कृषि क्षेत्र में नई संभावनाओं के लाभ

1. किसानों की आय में वृद्धि

नई तकनीकों और नीतियों के माध्यम से किसानों को अपनी आय दोगुनी करने का अवसर मिलेगा।

2. रोज़गार के अवसर

कृषि और संबंधित क्षेत्रों में स्टार्टअप्स, फूड प्रोसेसिंग, और टेक्नोलॉजी के माध्यम से रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे।

3. खाद्य सुरक्षा

बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकेगा।

4. पर्यावरण संरक्षण

सस्टेनेबल और जैविक खेती पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद करेगी।

5. ग्रामीण विकास

कृषि क्षेत्र के विकास से ग्रामीण क्षेत्रों का समग्र विकास संभव होगा।

 

चुनौतियाँ और समाधान

1. शिक्षा और जागरूकता की कमी

  • किसानों को नई तकनीकों और नीतियों के बारे में जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
  • कृषि प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना से किसानों को प्रशिक्षित किया जा सकता है।

2. संसाधनों की कमी

  • छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता और सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिए।
  • कर्ज माफी और लोन उपलब्धता को सरल बनाया जाना चाहिए।

3. जल संकट

  • जल प्रबंधन और सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना जरूरी है।

4. बिचौलियों की समस्या

  • किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग बढ़ाना होगा।

निष्कर्ष

कृषि क्षेत्र में नई संभावनाएँ केवल भारत के किसानों की स्थिति सुधार सकती हैं, बल्कि यह देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना को भी सुदृढ़ बना सकती हैं। नई तकनीक, सरकारी योजनाएँ, और जागरूकता अभियानों के माध्यम से भारत कृषि क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।
जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था,
"
भारत की आत्मा गाँवों में बसती है,"
उसी प्रकार, कृषि का विकास भारत के समग्र विकास का आधार बनेगा। कृषि में नई संभावनाओं को अपनाने से भारत केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक कृषि बाजार में भी अपनी पहचान स्थापित करेगा।

Q-3 Globali7ation and cottage industry भूमंडलीकरण और कुटीर उद्योग

Answer-

भूमंडलीकरण आज के युग की सबसे चर्चित अवधारणाओं में से एक है। यह प्रक्रिया देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, और राजनीतिक संबंधों को गहराई से जोड़ती है। भूमंडलीकरण के कारण दुनिया एक वैश्विक गाँव बन गई है। इसका प्रभाव उद्योग, व्यापार, और रोजगार पर विशेष रूप से दिखाई देता है। इस संदर्भ में, कुटीर उद्योग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ और ग्रामीण समाज का आधार है। लेकिन भूमंडलीकरण के बढ़ते प्रभाव ने कुटीर उद्योगों को कई चुनौतियों और अवसरों के सामने ला खड़ा किया है।

 

भूमंडलीकरण: एक परिचय

भूमंडलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, विचारों, और संसाधनों का आदान-प्रदान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता है। इसमें व्यापार, निवेश, और संचार तकनीकों का महत्वपूर्ण योगदान है।
भूमंडलीकरण के मुख्य पहलू:

  1. अंतरराष्ट्रीय व्यापार का विस्तार
  2. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय
  3. संचार और तकनीकी क्रांति
  4. सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान

भूमंडलीकरण के चलते व्यापार और उद्योग को नई ऊँचाइयाँ मिली हैं, लेकिन इसके साथ ही कई पारंपरिक और छोटे उद्योग, जैसे कुटीर उद्योग, पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है।

 

कुटीर उद्योग: एक परिचय

कुटीर उद्योग वे उद्योग हैं जो छोटे पैमाने पर स्थापित होते हैं और जिनमें पारंपरिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये उद्योग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में होते हैं और परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित किए जाते हैं।
कुटीर उद्योगों के उदाहरण:

  1. हस्तशिल्प
  2. हथकरघा
  3. जूट और बाँस उत्पाद
  4. मिट्टी के बर्तन
  5. खादी और वस्त्र उद्योग

कुटीर उद्योग केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति और परंपरा के संवाहक भी हैं।

 

भूमंडलीकरण का कुटीर उद्योग पर प्रभाव

भूमंडलीकरण का कुटीर उद्योगों पर प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा गया है।

1. सकारात्मक प्रभाव

  • अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँच:
    भूमंडलीकरण ने कुटीर उद्योगों को विदेशी बाजारों तक पहुँचने का अवसर दिया है। भारतीय हस्तशिल्प और खादी जैसे उत्पादों की माँग विदेशों में बढ़ी है।
  • तकनीकी सुधार:
    भूमंडलीकरण के कारण आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ा है, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में सुधार हुआ है।
  • सरकारी सहायता और योजनाएँ:
    कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे "मेक इन इंडिया," "स्टार्टअप इंडिया," और "सहकार से समृद्धि।"
  • नए रोजगार के अवसर:
    भूमंडलीकरण ने कुटीर उद्योगों में नए रोजगार के अवसर पैदा किए हैं, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए।

2. नकारात्मक प्रभाव

  • प्रतिस्पर्धा का बढ़ना:
    बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े उद्योगों की प्रतिस्पर्धा के कारण कुटीर उद्योगों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
  • सस्ते आयातित उत्पादों का प्रभाव:
    विदेशी उत्पादों की अधिकता ने कुटीर उद्योग के उत्पादों की माँग को कम कर दिया है।
  • पारंपरिक तकनीकों का ह्रास:
    आधुनिक तकनीकों और औद्योगिकीकरण के कारण पारंपरिक शिल्प और कौशल धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं।
  • असंगठित क्षेत्र की समस्या:
    कुटीर उद्योग असंगठित क्षेत्र में आते हैं, जिससे इन्हें वित्तीय और कानूनी सहायता प्राप्त करने में कठिनाई होती है।

 

कुटीर उद्योगों के सामने चुनौतियाँ

1. वित्तीय संसाधनों की कमी

कुटीर उद्योगों को अपनी स्थापना और संचालन के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती। बैंक और वित्तीय संस्थाएँ इन्हें ऋण देने में संकोच करती हैं।

2. प्रशिक्षण और कौशल की कमी

कुटीर उद्योगों में काम करने वाले लोगों के पास आधुनिक तकनीकों और व्यवसाय प्रबंधन का प्रशिक्षण नहीं होता।

3. मूल्य निर्धारण और बाजार तक पहुँच

कुटीर उद्योगों के उत्पादों की कीमत विदेशी उत्पादों की तुलना में अधिक होती है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा कमजोर होती है।

4. आधुनिकीकरण की कमी

पारंपरिक तकनीकों का उपयोग और उत्पादन की धीमी गति कुटीर उद्योगों को नुकसान पहुँचाती है।

5. बिचौलियों की भूमिका

कुटीर उद्योग के उत्पाद अक्सर बिचौलियों के माध्यम से बेचे जाते हैं, जिससे किसानों और कारीगरों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

 

कुटीर उद्योगों को सशक्त बनाने के उपाय

1. सरकारी सहायता और नीतियाँ

  • सरकार को कुटीर उद्योगों के लिए विशेष योजनाएँ लागू करनी चाहिए, जिनमें वित्तीय सहायता, सब्सिडी, और करों में छूट शामिल हो।
  • "एक जिला, एक उत्पाद" जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए।

2. तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता

  • कुटीर उद्योगों को आधुनिक तकनीकों और कौशल विकास का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  • प्रशिक्षण केंद्र और कार्यशालाओं की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में की जानी चाहिए।

3. मूल्य संवर्द्धन और विपणन

  • कुटीर उद्योगों के उत्पादों का मूल्य संवर्द्धन (Value Addition) किया जाना चाहिए।
  • -कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुँचाने की सुविधा दी जानी चाहिए।

4. विदेशी बाजार तक पहुँच

  • कुटीर उद्योगों के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रमोट करने के लिए प्रदर्शनियों और व्यापार मेलों का आयोजन किया जाना चाहिए।

5. सहकारी मॉडल का उपयोग

  • कुटीर उद्योगों को संगठित करने के लिए सहकारी मॉडल अपनाया जाना चाहिए, जिससे उत्पादकता और आय में वृद्धि हो।

 

कुटीर उद्योग और आत्मनिर्भर भारत

कुटीर उद्योग "आत्मनिर्भर भारत" अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह अभियान भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देकर विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने का प्रयास करता है।

  • खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के माध्यम से कुटीर उद्योगों को समर्थन दिया जा रहा है।
  • कुटीर उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाकर शहरी क्षेत्रों पर निर्भरता कम करते हैं।

निष्कर्ष

भूमंडलीकरण ने कुटीर उद्योगों के सामने चुनौतियाँ और अवसर दोनों प्रस्तुत किए हैं। इन उद्योगों को जीवित रखने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए सरकार, समाज, और उद्यमियों को मिलकर काम करना होगा।
जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था:
"
ग्राम स्वराज के बिना भारत का विकास अधूरा है।"
कुटीर उद्योग भारतीय गाँवों की आत्मा हैं। यदि इन्हें उचित समर्थन और संसाधन मिलें, तो ये केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएँगे, बल्कि देश की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर को भी संरक्षित करेंगे।

 

Secton-C

Q-1 The effect of economic crisis in Sri Lanka on whole world. श्रीलंका में आए आर्थिक संकट का पूरे विश्व में प्रभाव

Answer-

श्रीलंका, जो कभी दक्षिण एशिया का एक समृद्ध और शांतिपूर्ण देश माना जाता था, हाल के वर्षों में गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। इस संकट ने केवल श्रीलंका के नागरिकों को प्रभावित किया है, बल्कि इसके प्रभाव ने वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को भी झकझोर कर रख दिया है। श्रीलंका का यह आर्थिक संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार, और राजनीति पर क्या प्रभाव डालता है, इसे समझना आज की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।

 

श्रीलंका में आर्थिक संकट का कारण

श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें घरेलू नीतिगत असफलताएँ, वैश्विक कारक, और महामारी का प्रभाव शामिल हैं।

  1. नीतिगत गलतियाँ
    • श्रीलंका सरकार ने कृषि क्षेत्र में अचानक जैविक खेती पर जोर दिया, जिससे खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई।
    • कर कटौती और राजस्व की कमी ने सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ा दिया।
  2. विदेशी मुद्रा भंडार की कमी
    • श्रीलंका का विदेशी कर्ज बहुत अधिक बढ़ गया, और विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कगार पर पहुँच गया।
    • विदेशी ऋण चुकाने में असमर्थता ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में श्रीलंका की साख को गिरा दिया।
  3. महामारी का प्रभाव
    • कोविड-19 महामारी के कारण पर्यटन उद्योग, जो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है, बुरी तरह प्रभावित हुआ।
  4. रूस-यूक्रेन युद्ध
    • इस युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित किया, जिससे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हुई।
  5. आयात पर निर्भरता
    • श्रीलंका ने अपने आवश्यक खाद्य और ईंधन की जरूरतों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भरता बनाई, जिससे आर्थिक दबाव और बढ़ा।

 

श्रीलंका में आर्थिक संकट के प्रभाव

1. आर्थिक अस्थिरता

  • महंगाई दर 50% से अधिक पहुँच गई, जिससे आम जनता के लिए दैनिक जीवन कठिन हो गया।
  • ईंधन, खाद्य, और दवाओं की भारी कमी ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।
  • सरकारी वित्तीय संसाधन समाप्त होने से सार्वजनिक सेवाओं पर भी बुरा असर पड़ा।

2. राजनीतिक अस्थिरता

  • जनता के विरोध प्रदर्शनों और सरकार विरोधी आंदोलनों ने राजनीतिक स्थिति को अस्थिर कर दिया।
  • राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा।

3. सामाजिक प्रभाव

  • गरीबी और बेरोजगारी में वृद्धि हुई।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएँ बाधित हो गईं।

 

वैश्विक प्रभाव

श्रीलंका का आर्थिक संकट केवल उसके अपने देश तक सीमित नहीं है। इसका असर वैश्विक स्तर पर भी देखा गया है।

1. दक्षिण एशिया पर प्रभाव

  • श्रीलंका का संकट अन्य दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक चेतावनी है।
  • नेपाल, पाकिस्तान, और बांग्लादेश जैसे देशों में भी श्रीलंका जैसी परिस्थितियाँ बनने की संभावना बढ़ गई है।

2. वैश्विक आपूर्ति शृंखला

  • श्रीलंका हिंद महासागर में एक महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित है। आर्थिक संकट के कारण इसकी बंदरगाह सेवाएँ बाधित हुईं, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई।
  • कच्चे माल और तैयार उत्पादों की डिलीवरी में देरी हुई।

3. चीन और भारत की भूमिका

  • श्रीलंका में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया था, लेकिन ऋण अदायगी में असमर्थता के कारण चीन को आर्थिक और राजनीतिक झटके लगे।
  • भारत ने श्रीलंका को सहायता देकर अपनी क्षेत्रीय भूमिका को मजबूत किया।

4. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों पर प्रभाव

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, और अन्य वित्तीय संस्थानों पर दबाव बढ़ा कि वे श्रीलंका को सहायता प्रदान करें।
  • वैश्विक वित्तीय संस्थानों ने अन्य विकासशील देशों में आर्थिक संकट से बचाव के लिए नई योजनाएँ तैयार करनी शुरू कीं।

5. वैश्विक निवेशकों की चिंता

  • श्रीलंका का संकट वैश्विक निवेशकों के लिए एक चेतावनी बना कि विकासशील देशों में निवेश जोखिमपूर्ण हो सकता है।
  • निवेशकों ने अन्य देशों में भी संभावित आर्थिक अस्थिरता की समीक्षा करना शुरू किया।

6. खाद्य और ऊर्जा संकट

  • श्रीलंका का संकट वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट को और गहरा करता है।
  • आयातित ईंधन और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि ने अन्य देशों को भी प्रभावित किया।

 

भारत पर प्रभाव

श्रीलंका का आर्थिक संकट भारत के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत और श्रीलंका भौगोलिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक रूप से जुड़े हुए हैं।

  1. आर्थिक प्रभाव
    • श्रीलंका के संकट ने भारत के निर्यातकों को प्रभावित किया, विशेष रूप से कृषि और औद्योगिक उत्पादों के क्षेत्रों में।
    • श्रीलंका के साथ व्यापार संतुलन बिगड़ गया।
  2. शरणार्थी संकट
    • श्रीलंका के नागरिकों ने तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों में शरण लेने की कोशिश की, जिससे भारत पर सामाजिक और आर्थिक दबाव बढ़ा।
  3. राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव
    • भारत ने श्रीलंका को आर्थिक सहायता और कर्ज राहत प्रदान कर अपनी क्षेत्रीय नेतृत्व भूमिका को मजबूत किया।

 

समाधान और रास्ते

श्रीलंका के आर्थिक संकट से निपटने के लिए और वैश्विक प्रभावों को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:

1. श्रीलंका के लिए सुधारात्मक कदम

  • आर्थिक नीतियों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जानी चाहिए।
  • राजस्व बढ़ाने के लिए कर सुधार लागू किए जाएँ।
  • कृषि और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए।

2. अंतरराष्ट्रीय सहायता

  • IMF और विश्व बैंक को श्रीलंका की मदद के लिए विशेष राहत पैकेज प्रदान करने चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खाद्य और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।

3. वैश्विक नीति समन्वय

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला को स्थिर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना होगा।
  • ऊर्जा और खाद्य संकट से निपटने के लिए सामूहिक रणनीतियाँ तैयार करनी होंगी।

4. क्षेत्रीय सहयोग

  • भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों को श्रीलंका के पुनर्निर्माण में सहयोग देना चाहिए।
  • SAARC और BIMSTEC जैसे क्षेत्रीय संगठनों को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

निष्कर्ष

श्रीलंका में आया आर्थिक संकट केवल एक देश की कहानी है, बल्कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी भी है। यह संकट दिखाता है कि आर्थिक नीतियों की विफलता और वैश्विक आपदाएँ कैसे किसी देश को अस्थिर कर सकती हैं।
भारत और अन्य देशों को इस संकट से सबक लेकर अपनी आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ और सतर्क बनाना चाहिए। वैश्विक स्तर पर सहयोग और एकजुटता से इस प्रकार के संकटों से केवल निपटा जा सकता है, बल्कि भविष्य में उन्हें टाला भी जा सकता है।
जैसा कि नेल्सन मंडेला ने कहा था:
"
संकट में एकता और सहयोग ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।"
श्रीलंका के संकट ने यही सिखाया है कि दुनिया को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि हर देश स्थिर और समृद्ध हो सके।

 

Q-2 Melting glaciers danger for human beings. पिघलते ग्लेशियरों का मानव जाति के सामने संकट

Answer-

ग्लेशियर, जिन्हें प्रकृति का अद्भुत वरदान माना जाता है, हमारे पर्यावरण और जलवायु संतुलन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये विशाल बर्फीले पर्वत केवल पृथ्वी को शीतल बनाए रखने में सहायक हैं, बल्कि मानव जीवन, वनस्पति और जीव-जंतुओं के लिए जीवनदायिनी जल का मुख्य स्रोत भी हैं। परंतु, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पिघलते ग्लेशियरों ने केवल पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ाया है, बल्कि मानव जाति के समक्ष कई गंभीर संकट भी खड़े कर दिए हैं।

 

ग्लेशियरों का महत्व

ग्लेशियर पृथ्वी की सतह का लगभग 10% हिस्सा कवर करते हैं और ये दुनिया के मीठे पानी के सबसे बड़े स्रोत हैं।

  1. जल आपूर्ति:
    • ग्लेशियरों से पिघलता हुआ पानी नदियों, झीलों, और अन्य जलस्रोतों को भरता है।
    • भारत में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ हिमालय के ग्लेशियरों से निकलती हैं।
  2. जलवायु नियंत्रण:
    • ग्लेशियर सूरज की गर्मी को परावर्तित करते हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहता है।
    • ग्लेशियरों का पिघलना समुद्र स्तर को बढ़ाता है, जिससे तटीय क्षेत्रों को खतरा होता है।
  3. पर्यावरणीय संतुलन:
    • ग्लेशियरों का स्थायित्व वनस्पति, जीव-जंतुओं, और पारिस्थितिक तंत्र के लिए आवश्यक है।
    • यह वैश्विक जल चक्र का एक प्रमुख हिस्सा है।

 

ग्लेशियरों के पिघलने के कारण

1. ग्लोबल वार्मिंग

  • मानव गतिविधियों के कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ गई है।
  • तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

2. कार्बन उत्सर्जन

  • औद्योगिकीकरण, परिवहन, और ऊर्जा उत्पादन के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें बढ़ रही हैं।

3. मानवीय गतिविधियाँ

  • खनन, वनों की कटाई, और भूमि उपयोग में बदलाव ने ग्लेशियरों पर बुरा प्रभाव डाला है।
  • पर्यटन और बुनियादी ढांचे का निर्माण भी ग्लेशियरों को नुकसान पहुँचा रहा है।

4. जलवायु परिवर्तन

  • मौसम के अनियमित पैटर्न, जैसे असामान्य गर्मी और बारिश, ग्लेशियरों को तेजी से पिघलाने में योगदान दे रहे हैं।

 

ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव

1. जल संकट

  • ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों और जलस्रोतों का जल स्तर अस्थायी रूप से बढ़ सकता है, लेकिन लंबे समय में यह कमी का कारण बनेगा।
  • हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए यह गंभीर संकट पैदा कर सकता है।

2. समुद्र स्तर में वृद्धि

  • ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों और द्वीपों को खतरा है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2100 तक समुद्र का स्तर 1-2 मीटर तक बढ़ सकता है।

3. बाढ़ और भूस्खलन

  • ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में जल स्तर बढ़ता है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
  • ग्लेशियर झीलों के फटने (GLOF) से भूस्खलन और विनाशकारी बाढ़ हो सकती है।

4. पर्यावरणीय असंतुलन

  • ग्लेशियरों का पिघलना वनस्पति और जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक है।
  • ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले प्राणियों, जैसे ध्रुवीय भालू, हिम तेंदुआ आदि, के अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है।

5. खेती और खाद्य सुरक्षा पर असर

  • ग्लेशियरों से मिलने वाले पानी की कमी से सिंचाई प्रभावित होगी।
  • कृषि उत्पादन घटने से खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है।

6. तापमान वृद्धि

  • ग्लेशियरों का पिघलना पृथ्वी के अल्बेडो प्रभाव को कम करता है, जिससे वैश्विक तापमान और बढ़ता है।

 

मानव जाति के सामने संकट

ग्लेशियरों के पिघलने के कारण मानव जाति के समक्ष कई गंभीर संकट खड़े हो गए हैं।

1. तटीय क्षेत्रों पर खतरा

  • भारत जैसे देशों में तटीय शहरों, जैसे मुंबई, चेन्नई, और कोलकाता, को समुद्र स्तर बढ़ने के कारण खतरा है।
  • लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।

2. शरणार्थी संकट

  • तटीय क्षेत्रों और द्वीपों के डूबने से "जलवायु शरणार्थी" की संख्या बढ़ेगी।
  • इससे वैश्विक शरणार्थी समस्या और जटिल हो जाएगी।

3. स्वास्थ्य समस्याएँ

  • ग्लेशियरों के पिघलने से जलजनित बीमारियाँ बढ़ सकती हैं।
  • मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ ठंडे क्षेत्रों में भी फैल सकती हैं।

4. आर्थिक प्रभाव

  • कृषि और ऊर्जा क्षेत्र पर प्रभाव से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
  • पर्यटन और संबंधित उद्योगों को भारी नुकसान होगा।

5. सामाजिक अस्थिरता

  • जल, भोजन, और संसाधनों की कमी से संघर्ष और अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • यह आपराधिक गतिविधियों और आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है।

 

समाधान और उपाय

1. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना

  • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जैविक ईंधन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना।
  • उद्योगों और परिवहन क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता बढ़ाना।

2. वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण

  • वनों की कटाई रोकना और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
  • वनों का संरक्षण ग्लेशियरों के पिघलने की गति को कम कर सकता है।

3. जलवायु समझौते और नीतियाँ

  • पेरिस समझौते जैसे वैश्विक समझौतों का पालन करना।
  • कार्बन क्रेडिट और अन्य जलवायु सुधार नीतियों को लागू करना।

4. स्थानीय जागरूकता

  • ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों को जागरूक करना।
  • सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए शिक्षा प्रदान करना।

5. वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी

  • ग्लेशियरों की निगरानी के लिए उपग्रह और अन्य तकनीकों का उपयोग।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास।

निष्कर्ष

ग्लेशियरों का पिघलना मानव जाति के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल पर्यावरणीय संतुलन को बाधित करता है, बल्कि हमारे अस्तित्व को भी खतरे में डालता है।
महात्मा गांधी ने कहा था:
"
पृथ्वी सबकी जरूरतें पूरी कर सकती है, लेकिन किसी के लालच को नहीं।"
आज मानव जाति को यह समझने की आवश्यकता है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है।
ग्लेशियरों की रक्षा करना केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि मानवता के भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास है। अगर हम अभी आवश्यक कदम नहीं उठाते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों को इस संकट का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अतः हमें मिलकर एक ऐसा भविष्य बनाना चाहिए, जहाँ ग्लेशियर संरक्षित रहें और पृथ्वी एक संतुलित और समृद्ध स्थान बनी रहे।

 

Q-3 P.M. Annadata Aay Sanrakshan Abhiyan. प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA)

Answer-

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ अधिकांश जनसंख्या की आजीविका कृषि पर निर्भर है। यहाँ के किसानों को 'अन्नदाता' कहा जाता है क्योंकि वे देश के लिए खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों का उत्पादन करते हैं। लेकिन, किसानों की आय में स्थिरता लाने और उन्हें आर्थिक रूप से सुरक्षित रखने के लिए समय-समय पर सरकार को नई योजनाएँ और नीतियाँ लागू करनी पड़ी हैं। ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण योजना है "प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान" (PM-AASHA), जिसे 2018 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया।

PM-AASHA का मुख्य उद्देश्य किसानों की आय को सुनिश्चित करना, उन्हें बाजार की अस्थिरताओं से बचाना और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की नीति को प्रभावी रूप से लागू करना है। इस लेख में हम PM-AASHA के विभिन्न पहलुओं, इसके उद्देश्य, कार्यान्वयन, चुनौतियों और प्रभाव पर चर्चा करेंगे।

 

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान का परिचय

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) कृषि क्षेत्र में किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक समग्र योजना है। इसका मुख्य लक्ष्य किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाना और उनके आर्थिक हितों की रक्षा करना है। इस योजना के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए तीन नई योजनाएँ शामिल की गईं:

  1. न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत खरीदी योजना (Price Support Scheme - PSS)
  2. मूल्य अभाव भुगतान योजना (Price Deficiency Payment Scheme - PDPS)
  3. निजी खरीद एवं भंडारण योजना (Private Procurement and Stockist Scheme - PPSS)

इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को उनकी फसल का सही दाम दिलाने और कृषि क्षेत्र में स्थिरता लाने का प्रयास किया गया है।

 

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के उद्देश्य

  1. किसानों की आय में वृद्धि:
    • किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाना और उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करना।
  2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का क्रियान्वयन:
    • MSP पर खरीद सुनिश्चित करना ताकि किसानों को उनकी लागत का न्यूनतम मूल्य प्राप्त हो।
  3. मूल्य अस्थिरता से बचाव:
    • बाजार में मूल्य गिरावट के समय किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाना।
  4. कृषि क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन:
    • किसानों को स्थायित्व प्रदान करके उन्हें कृषि में अधिक निवेश के लिए प्रेरित करना।
  5. मध्यस्थों की भूमिका कम करना:
    • किसानों और उपभोक्ताओं के बीच सीधा संपर्क बढ़ाना और बिचौलियों की भूमिका को कम करना।

 

PM-AASHA के अंतर्गत योजनाएँ

1. न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत खरीदी योजना (PSS)

  • इस योजना के तहत सरकार विभिन्न फसलों की MSP पर खरीद करती है।
  • यह योजना मुख्य रूप से दलहन और तिलहन की खरीद के लिए लागू की गई है।
  • सरकार द्वारा नामित एजेंसियाँ, जैसे भारतीय खाद्य निगम (FCI), इस खरीद प्रक्रिया को संचालित करती हैं।

2. मूल्य अभाव भुगतान योजना (PDPS)

  • इस योजना में सरकार किसानों को उनकी फसल की MSP और बाजार मूल्य के बीच का अंतर भुगतान करती है।
  • यह योजना मुख्य रूप से उन राज्यों में लागू होती है, जहाँ फसलों की सरकारी खरीद नहीं होती।

3. निजी खरीद एवं भंडारण योजना (PPSS)

  • इस योजना के तहत निजी क्षेत्र को किसानों से उनकी फसल MSP पर खरीदने की अनुमति दी गई है।
  • इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है और किसानों को फसल बेचने के लिए अधिक विकल्प मिले हैं।

 

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान का प्रभाव

1. किसानों को लाभकारी मूल्य मिला

  • MSP का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने से किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलने लगा है।

2. कृषि क्षेत्र में स्थिरता

  • बाजार की अस्थिरता से बचाव के कारण किसानों को अधिक स्थिर आय प्राप्त होने लगी है।

3. कृषि उत्पादकता में वृद्धि

  • आर्थिक सुरक्षा मिलने से किसानों ने कृषि में अधिक निवेश किया, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई।

4. कृषि में विविधता

  • दलहन और तिलहन जैसी फसलों के लिए MSP लागू होने से किसानों ने इन फसलों की खेती को प्राथमिकता दी।

5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार

  • किसानों की आय बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला।

 

PM-AASHA की चुनौतियाँ

1. बजटीय बाधाएँ

  • MSP पर फसलों की खरीद और भुगतान के लिए पर्याप्त बजट की आवश्यकता होती है।
  • सीमित संसाधनों के कारण योजना का प्रभाव सीमित हो सकता है।

2. भौगोलिक असमानता

  • यह योजना मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में प्रभावी है, जहाँ सरकार की खरीद एजेंसियाँ सक्रिय हैं।
  • दूर-दराज के क्षेत्रों के किसान अभी भी इसका लाभ नहीं उठा पाते।

3. भंडारण सुविधाओं की कमी

  • फसलों के भंडारण के लिए पर्याप्त गोदाम और कोल्ड स्टोरेज की कमी योजना के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बनती है।

4. प्रभावी निगरानी की कमी

  • MSP और भुगतान प्रक्रिया में पारदर्शिता और निगरानी का अभाव कई बार किसानों को लाभ से वंचित कर देता है।

5. निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी

  • निजी खरीद योजना (PPSS) में निजी क्षेत्र की भागीदारी अभी भी सीमित है।

 

समाधान और सुझाव

  1. भंडारण क्षमता का विस्तार
    • फसलों के सुरक्षित भंडारण के लिए आधुनिक गोदामों और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का विकास किया जाए।
  2. प्रौद्योगिकी का उपयोग
    • MSP और भुगतान प्रक्रिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने से पारदर्शिता बढ़ेगी।
    • किसानों को योजनाओं के बारे में जानकारी देने के लिए मोबाइल एप्लिकेशन और हेल्पलाइन शुरू की जाए।
  3. निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना
    • निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन दिए जाएँ।
  4. कृषि में विविधता
    • फसल विविधीकरण और जलवायु अनुकूल खेती को प्रोत्साहन दिया जाए।
  5. सर्वव्यापी क्रियान्वयन
    • PM-AASHA योजना को देश के सभी हिस्सों में समान रूप से लागू करने के लिए ठोस रणनीति बनाई जाए।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) किसानों के लिए एक क्रांतिकारी पहल है। यह योजना केवल उनकी आय को स्थिर बनाती है, बल्कि कृषि क्षेत्र में स्थिरता और उत्पादकता को भी बढ़ावा देती है। हालांकि, इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कुछ चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।

भारत में कृषि की स्थिरता और किसानों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था,
"
भारत का भविष्य उसके गाँवों में बसता है।"
इसलिए, PM-AASHA जैसी योजनाएँ केवल किसानों की मदद करेंगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय विकास को भी गति देंगी।

यदि इस योजना को पूरी पारदर्शिता और समर्पण के साथ लागू किया जाए, तो यह भारतीय कृषि और किसानों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। अन्नदाता की आय सुरक्षित होगी, तो भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा और 'जय जवान, जय किसान' का नारा साकार होगा।

 

 

Comments

Popular posts from this blog

प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रबंधन द्वारा फैकल्टी को कम वेतन देना और उनका शोषण: एक विश्लेषण

महाकुंभ 2025

चीन में ह्यूमन मेटाप्नेमोवायरस (Human Metapneumovirus - hMPV)का बढ़ता प्रकोप।