भारतीय संविधान: बी.एन. राव से डॉ. अंबेडकर तक का सफर
भारतीय संविधान: बी.एन. राव से डॉ. अंबेडकर तक का सफर
भारतीय संविधान के निर्माण में अनेक व्यक्तियों और समितियों का योगदान है। यह एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न देशों के संविधानों से प्रेरणा ली गई। हालांकि, भारतीय संविधान के निर्माण के इतिहास में डॉ. बी.आर. अंबेडकर को विशेष सम्मान और पहचान दी जाती है। यह सम्मान उनके योगदान की महत्ता को दर्शाता है, लेकिन इसमें अन्य लोगों का योगदान भी कम नहीं है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
1. बी.एन. राव का योगदान: प्रारंभिक मसौदा तैयार करना
- बी.एन. राव (बेनगल नरसिंह राव): बी.एन. राव भारतीय संविधान के प्रारंभिक मसौदे को तैयार करने वाले पहले व्यक्ति थे।
- उन्होंने विभिन्न देशों के संविधानों का गहन अध्ययन किया और उन संविधानों के उपयोगी और प्रासंगिक हिस्सों को भारतीय संदर्भ में लागू करने के लिए सुझाव दिए।
- उनकी भूमिका:
- प्रारंभिक मसौदा तैयार करना।
- संविधान सभा के सदस्यों को तकनीकी और कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करना।
लेकिन बी.एन. राव का कार्य अधिकतर एक तकनीकी और प्रारंभिक भूमिका तक सीमित था।
2. संविधान सभा और सात सदस्यीय मसौदा समिति
- भारतीय संविधान का अंतिम स्वरूप मसौदा समिति (Drafting Committee) ने तैयार किया।
- इस समिति में 7 सदस्य थे, और डॉ. बी.आर. अंबेडकर इसके अध्यक्ष थे।
- अन्य प्रमुख सदस्य:
- अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
- के.एम. मुंशी
- टी.टी. कृष्णमाचारी
- और अन्य।
समिति का कार्य:
- प्रारंभिक मसौदे में संशोधन करना।
- बहस और चर्चाओं के आधार पर संविधान को अंतिम रूप देना।
3. डॉ. बी.आर. अंबेडकर का प्रमुख योगदान
डॉ. अंबेडकर को "भारतीय संविधान के निर्माता" के रूप में विशेष मान्यता दी जाती है, और इसके पीछे कई कारण हैं:
(a) संविधान सभा में नेतृत्व:
- अंबेडकर ने संविधान के मसौदे को प्रस्तुत करने और उसका बचाव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने संविधान के हर अनुच्छेद पर विस्तार से चर्चा की और आलोचनाओं का तार्किक उत्तर दिया।
(b) समानता और सामाजिक न्याय पर जोर:
- अंबेडकर ने संविधान में समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय जैसे मौलिक अधिकारों को शामिल करने पर जोर दिया।
- उनके प्रयासों से दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों को संवैधानिक अधिकार और संरक्षण मिला।
(c) विभिन्न हितों का समन्वय:
- संविधान सभा में विभिन्न विचारधाराओं और समूहों का समन्वय करना चुनौतीपूर्ण था।
- डॉ. अंबेडकर ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान सभी भारतीयों के लिए प्रासंगिक और स्वीकार्य हो।
4. संविधान के विभिन्न हिस्सों का स्रोत
भारतीय संविधान को "उधार लिया हुआ संविधान" भी कहा जाता है, क्योंकि यह विभिन्न देशों के संविधानों से प्रेरित है:
- ब्रिटेन: संसदीय प्रणाली।
- अमेरिका: मौलिक अधिकार और न्यायिक समीक्षा।
- आयरलैंड: नीति-निर्देशक तत्व।
- कनाडा: संघीय ढांचा।
- जर्मनी: आपातकालीन प्रावधान।
डॉ. अंबेडकर का योगदान इस बात में था कि उन्होंने इन स्रोतों को भारतीय संदर्भ में लागू करने का मार्गदर्शन दिया।
5. डॉ. अंबेडकर को अधिक मान्यता क्यों?
(a) प्रभावी नेतृत्व:
डॉ. अंबेडकर संविधान सभा में बहस और चर्चाओं के केंद्र में थे। उनका तार्किक और गहन दृष्टिकोण संविधान निर्माण प्रक्रिया को एक दिशा देने में सहायक था।
(b) समाज सुधारक की भूमिका:
डॉ. अंबेडकर केवल एक कानूनी विशेषज्ञ नहीं थे, बल्कि वे एक सामाजिक न्याय के योद्धा भी थे। उन्होंने दलितों और पिछड़ों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जिससे उन्हें व्यापक सामाजिक सम्मान मिला।
(c) संविधान के प्रति समर्पण:
- डॉ. अंबेडकर ने संविधान निर्माण में अपनी ऊर्जा और ज्ञान का पूर्ण रूप से उपयोग किया।
- उनके नेतृत्व के बिना संविधान को तैयार करना संभव नहीं था।
6. अन्य योगदानकर्ताओं की उपेक्षा?
बी.एन. राव और अन्य सदस्यों का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण था, लेकिन डॉ. अंबेडकर को अधिक पहचान इसलिए मिली क्योंकि:
- उन्होंने अंतिम मसौदे का नेतृत्व किया।
- उन्होंने संविधान सभा में सबसे कठिन और विवादास्पद मुद्दों का समाधान किया।
- उनकी सामाजिक सुधार की पृष्ठभूमि ने उन्हें जनता के बीच एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया।
7. निष्कर्ष
यह सम्मान व्यक्तिगत उपलब्धियों का नहीं, बल्कि उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक और सामाजिक कार्यों का प्रतीक है।
Comments
Post a Comment