UPPCS MAINS GENERAL STUDIES (PAPER - III) solution 2023

 

UPPCS MAINS GENERAL STUDIES (PAPER - III) solution 2023
Section-A

Q-1. Evaluate the policies of the Government of India regarding the promotion of food processing

and related industries खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योगों को प्रोत्साहन देने के संबंध में भारत सरकार की नीतियों का मूल्यांकन

Answer-

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत के कृषि क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके विकास से केवल कृषि उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है, बल्कि रोजगार सृजन, कृषि मूल्य श्रृंखला में सुधार और विदेशी मुद्रा अर्जन भी होता है। इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ बनाई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख नीतियाँ और योजनाएँ निम्नलिखित हैं:

1. प्रधानमंत्री मात्स्य सम्पदा योजना (PMMSY)

भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मात्स्य सम्पदा योजना के तहत मछली पालन और मत्स्य उत्पादों के प्रसंस्करण को प्रोत्साहित किया है। इस योजना का उद्देश्य मत्स्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना और देश में इस क्षेत्र को निवेश के लिए आकर्षक बनाना है। इस योजना के तहत उद्योग को आधुनिक तकनीक, बुनियादी ढांचे, और विपणन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

2. कृषि और प्रसंस्करण उद्योग विकास योजना (APEDA)

कृषि और प्रसंस्करण उद्योग विकास योजना (APEDA) के तहत कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और उनके निर्यात को बढ़ावा दिया जाता है। APEDA खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता, तकनीकी सहयोग और विपणन सुविधाएँ प्रदान करता है। इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने में मदद मिलती है।

3. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)

इस मिशन का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है। सरकार द्वारा इस मिशन के तहत छोटे और मझोले खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को प्रोत्साहन और सहायता प्रदान की जाती है, जिससे खाद्य सुरक्षा के उपायों में सुधार होता है।

4. मुलायम ऋण योजनाएँ और सब्सिडी

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार ने कई वित्तीय प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं। इनमें सब्सिडी, कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराना और टैक्स में छूट प्रदान करना शामिल है। इन योजनाओं का उद्देश्य छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देना है।

5. फूड प्रोसेसिंग पार्क योजना

भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण पार्क योजना के तहत राज्यों में आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण पार्क स्थापित किए हैं। इन पार्कों में उन्नत तकनीक, उत्पादकता बढ़ाने के लिए बुनियादी सुविधाएँ और समुचित कच्चा माल की आपूर्ति की जाती है। इन पार्कों के माध्यम से छोटे और मझोले उद्योगों को एक मंच मिलता है, जहाँ वे अपने उत्पादों को बड़े पैमाने पर बाजार में ला सकते हैं।

6. निर्यात संवर्धन योजनाएँ

भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात संवर्धन योजनाएँ बनाई हैं। इसके तहत कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए प्रोत्साहन दिए जाते हैं और वैश्विक बाजार में भारतीय उत्पादों की उपस्थिति को बढ़ाया जाता है। यह योजना भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करती है।

मूल्यांकन:

भारत सरकार की नीतियाँ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए काफी प्रभावी रही हैं। इन योजनाओं के माध्यम से उद्योग को वित्तीय सहायता, तकनीकी सहयोग, और बुनियादी ढांचे के विकास में मदद मिली है। इससे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में निवेश बढ़ा है और रोजगार सृजन हुआ है। साथ ही, इससे भारतीय खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, और निर्यात में भी वृद्धि देखी गई है।

हालांकि, इन नीतियों के क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। प्रमुख समस्याओं में बुनियादी ढांचे की कमी, उत्पादन के बाद के चरणों में आवश्यक तकनीकी सहायता की कमी, और कच्चे माल की आपूर्ति में असंतुलन शामिल हैं। इसके अलावा, छोटे और मझोले उद्योगों के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में कई बार जटिलताएँ आती हैं।

सुझाव:

  1. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को और अधिक सक्षम बनाने के लिए विदेशी और घरेलू प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर जोर दिया जाना चाहिए।
  2. मूल्य श्रृंखला में सुधार: कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला और प्रसंस्करण के बाद की सुविधाओं को मजबूत किया जाना चाहिए।
  3. शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों और उद्योग कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है, ताकि वे आधुनिक प्रसंस्करण तकनीकों और विपणन विधियों से परिचित हो सकें।

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर, भारत सरकार की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहित करने वाली नीतियाँ सकारात्मक दिशा में काम कर रही हैं। इन नीतियों के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि हुई है और उद्योग को स्थिरता मिली है। हालांकि, इन नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए और अधिक सुधार की आवश्यकता है। सरकार द्वारा उठाए गए कदम यदि सही दिशा में बढ़ते हैं, तो भारत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में विश्व में एक अग्रणी स्थान प्राप्त कर सकता है।

 

 

Q-2 Explain the implications of using E-technology to help the farmers किसानों की सहायता के लिए -तकनीकी के प्रयोग के निहितार्थ

Answer-

भारत में कृषि क्षेत्र का बहुत महत्व है, क्योंकि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या की आजीविका कृषि पर निर्भर है। हालांकि, कृषि में कई प्रकार की चुनौतियाँ हैं, जैसे कि मौसम में उतार-चढ़ाव, कृषि उत्पादन की असमानता, बाजार में मूल्य अस्थिरता, और किसानों को उचित जानकारी का अभाव। इन समस्याओं से निपटने के लिए -तकनीकी (इलेक्ट्रॉनिक तकनीक) का प्रयोग एक प्रभावी उपाय साबित हो सकता है। -तकनीकी का मतलब है, इंटरनेट और मोबाइल तकनीक का उपयोग करके किसानों को कृषि से संबंधित जानकारी और सेवाएँ प्रदान करना।

-तकनीकी के प्रयोग के निहितार्थ:

1.      कृषि संबंधित जानकारी का त्वरित वितरण: -तकनीकी के माध्यम से किसान इंटरनेट और मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए ताजे मौसम पूर्वानुमान, कीट-बीमारी की जानकारी, कृषि में उपयोग होने वाली नई तकनीकों, और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इससे किसानों को समय रहते सही निर्णय लेने में मदद मिलती है। उदाहरण के तौर पर, कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) और कृषि सलाहकार सेवाएँ किसानों को सीधे उनके मोबाइल पर कृषि सलाह देती हैं।

2.      कृषि उत्पादों का विपणन और बाजार से जुड़ाव: किसानों के लिए -मार्केटिंग प्लेटफॉर्म्स जैसे -नेम, एनएमसीएक्स आदि से जुड़कर अपनी फसलों का सही मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। इंटरनेट के माध्यम से किसानों को वैश्विक बाजार की जानकारी मिलती है और वे अपनी उपज को बेहतर कीमत पर बेच सकते हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका घटती है और किसानों को उचित मूल्य मिलता है।

3.      आसान वित्तीय सहायता और बीमा योजनाएँ: -तकनीकी के माध्यम से किसान विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और किसान क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ उठाने में सक्षम होते हैं। किसान मोबाइल एप्लिकेशन और ऑनलाइन पोर्टल्स के जरिए इन योजनाओं में आवेदन कर सकते हैं और वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इससे उन्हें समय पर सहायता मिलती है और वे अपनी खेती के जोखिम को कम कर सकते हैं।

4.      स्मार्ट कृषि उपकरणों का उपयोग: स्मार्ट कृषि उपकरण जैसे ड्रोन, सेंसर्स, और GPS सिस्टम के माध्यम से -तकनीकी किसानों को अपनी फसलों की निगरानी करने में मदद करते हैं। ये उपकरण फसल की स्थिति, मृदा का स्वास्थ्य और जलवायु की जानकारी प्रदान करके कृषि प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और उत्पादक बनाते हैं। इसके माध्यम से किसानों को बेहतर उत्पादकता और लागत में कमी आती है।

5.      कृषि में अनुसंधान और विकास: -तकनीकी किसानों को कृषि अनुसंधान से जुड़ी नई जानकारियाँ प्रदान करने का एक साधन है। इससे किसानों को नई कृषि तकनीकों, उन्नत बीजों और उर्वरकों के बारे में जानकारी मिलती है, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। इसके अलावा, वे नई किस्मों की फसलों के बारे में भी जान सकते हैं जो अधिक उत्पादन देने वाली होती हैं।

6.      कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों को ऑनलाइन शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से उन्नत कृषि तकनीकों और प्रबंधन के बारे में जानकारी दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, -लर्निंग प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से किसानों को उनकी भाषा में प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। इससे किसानों को अधिक कुशल बनाकर उनकी उत्पादन क्षमता में सुधार लाया जा सकता है।

7.      कृषि में आपूर्ति श्रृंखला का सुधार: -तकनीकी के माध्यम से आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी करना आसान हो जाता है। किसान सीधे उत्पादकों, थोक विक्रेताओं और उपभोक्ताओं से जुड़ सकते हैं, जिससे माल की ढुलाई और वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आती है। इससे केवल लागत कम होती है, बल्कि किसानों को अपने उत्पादों का सही मूल्य भी मिलता है।

निष्कर्ष:

-तकनीकी का प्रयोग भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। इससे किसानों को त्वरित जानकारी, बेहतर विपणन अवसर, वित्तीय सहायता, और उन्नत कृषि तकनीकों तक पहुँच मिलती है। इसके माध्यम से कृषि को एक स्मार्ट, प्रभावी और लाभकारी पेशे में बदला जा सकता है। हालांकि, इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है कि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर किसानों के लिए डिजिटल शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर, और आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करें। अगर इस दिशा में कदम उठाए जाते हैं, तो यह केवल किसानों की स्थिति में सुधार करेगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाएगा।

Q-3 What are the important challenges faced in the implementation of land reforms in India? Give your suggestions to remove these challenges. भारत में भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ और उनके निस्तारण हेतु सुझाव

Answer-

भूमि सुधार भारत के कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह किसानों की स्थिति को सुधारने, भूमि वितरण को समान बनाने, और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से लागू किया गया था। हालांकि, भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ सामने आई हैं, जिनसे निपटने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।

भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ:

1.      राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। कई राज्य सरकारों ने भूमि सुधारों को लागू करने में अनिच्छा दिखाई है, क्योंकि यह बड़े जमींदारों और प्रभावशाली वर्गों के हितों से टकराता है। इसके परिणामस्वरूप कई योजनाओं को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका।

2.      जमींदारों और प्रभावशाली वर्गों का विरोध: भूमि सुधारों का उद्देश्य जमींदारी प्रथा को समाप्त करना और भूमि का उचित वितरण करना था, लेकिन जमींदारों और प्रभावशाली वर्गों ने इसका विरोध किया। उन्होंने अपनी भूमि की पहचान बदलने और अन्य कानूनी दावों के माध्यम से भूमि सुधारों को लागू होने से रोका।

3.      कृषि भूमि का विकेंद्रीकरण और भूमि रिकॉर्ड की समस्याएँ: भूमि रिकॉर्ड की अप्रचलित स्थिति और भूमि के मालिकों के बारे में स्पष्ट जानकारी की कमी भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में बड़ी बाधा रही है। पुराने और असमान भूमि रिकॉर्ड की वजह से सही भूमि का निर्धारण करना मुश्किल हो जाता है।

4.      कृषि में पूंजी और संसाधनों की कमी: भूमि सुधारों के बाद भूमि का वितरण तो हुआ, लेकिन किसानों को आवश्यक संसाधन, तकनीक और पूंजी की कमी थी। किसानों के पास भूमि सुधार के बाद भी कृषि उपकरण, सिंचाई, उर्वरक, बीज, और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी रही, जिसके कारण उत्पादकता पर असर पड़ा।

5.      कानूनी और प्रशासनिक जटिलताएँ: भूमि सुधारों के लिए कानूनों की जटिलता और प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी भी एक बड़ी चुनौती रही है। भूमि के वितरण में होने वाली प्रशासनिक लापरवाही और कानूनी पेचीदगियाँ भूमि सुधारों के प्रभावी क्रियान्वयन में अवरोध पैदा करती हैं।

6.      आधुनिक तकनीक और कृषि निवेश की कमी: भूमि सुधार के बाद भूमि की उपयोगिता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग जरूरी था, लेकिन किसानों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी की कमी और उचित प्रशिक्षण का अभाव था। इससे भूमि का सही उपयोग और उत्पादकता बढ़ाने में कठिनाई हुई।

इन चुनौतियों के निस्तारण हेतु सुझाव:

1.      राजनीतिक इच्छाशक्ति का विकास: भूमि सुधारों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है। इसके लिए कृषि और भूमि सुधार से संबंधित योजनाओं में अधिक पारदर्शिता और एकजुटता की आवश्यकता है। जमींदारों और प्रभावशाली वर्गों के हितों को संतुलित करते हुए किसानों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

2.      भूमि रिकॉर्ड का आधुनिकीकरण: भूमि रिकॉर्ड को डिजिटलीकरण करके अपडेट किया जाए। इसके लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल प्रणाली स्थापित की जा सकती है, जिससे भूमि के मालिकों का विवरण और भूमि के आकार का सही रिकॉर्ड उपलब्ध हो। इससे भूमि के अधिकारों की पहचान और वितरण प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जा सकता है।

3.      कृषि संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाना: किसानों को उचित तकनीकी प्रशिक्षण, उन्नत बीज, सिंचाई सुविधाएँ और कृषि उपकरण प्रदान किए जाएं। इसके अलावा, किसानों को वित्तीय सहायता और कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराए जाने चाहिए, ताकि वे भूमि सुधार के बाद उत्पादन बढ़ा सकें।

4.      कानूनी सुधार और प्रशासनिक ढांचे की सुदृढ़ता: भूमि सुधारों के लिए आवश्यक कानूनी ढाँचे को सरल और सुलभ बनाया जाए। इसके साथ ही, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को तेज़ और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि किसानों को भूमि के वितरण में कोई कठिनाई हो। भूमि अदालतों और न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ और सरल बनाने के लिए सुधार की आवश्यकता है।

5.      भूमि का सही और समान वितरण: भूमि सुधारों के तहत भूमि का सही और समान वितरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। विशेष रूप से भूमिहीन और छोटे किसानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त किया जा सकेगा।

6.      समाज में जागरूकता और शिक्षा: किसानों को भूमि सुधारों के लाभ और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए व्यापक शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाए जाएं। इससे किसानों को भूमि सुधारों के महत्व को समझने में मदद मिलेगी और वे अपनी भूमि का अधिकतम लाभ उठा सकेंगे।

7.      कृषि तकनीकों का सुधार: भूमि सुधार के बाद भूमि के बेहतर उपयोग के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रसार किया जाना चाहिए। इसमें ड्रोन, सेंसर्स, उन्नत बीज, और स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। इससे भूमि की उत्पादकता में सुधार होगा और किसानों को अधिक लाभ मिलेगा।

निष्कर्ष:

भारत में भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन यदि उपरोक्त सुझावों को लागू किया जाए तो भूमि सुधारों का उद्देश्य साकार हो सकता है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, उचित प्रशासनिक ढाँचा, बेहतर कृषि संसाधनों की उपलब्धता, और जागरूकता के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। भूमि सुधारों के सफल क्रियान्वयन से केवल किसानों की स्थिति में सुधार होगा, बल्कि देश की समग्र कृषि उत्पादकता और आर्थिक स्थिति में भी महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।

Q-4  Explain the budget making process of the Government of India. Also explain the difference between plan expenditure and non-plan expenditure. भारत सरकार के बजट बनाने की प्रक्रिया और योजना व्यय एवं गैर-योजना व्यय में अंतर

Answer-

भारत सरकार के बजट बनाने की प्रक्रिया:

भारत में बजट बनाने की प्रक्रिया एक लंबी और विस्तृत प्रक्रिया है, जो वित्त वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च) के लिए केंद्र सरकार की आय और व्यय का अनुमान लगाती है। इस प्रक्रिया में सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के योगदान और सलाह का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बजट की प्रक्रिया आम तौर पर निम्नलिखित चरणों में होती है:

  1. पूर्व बजट तैयारी: बजट प्रक्रिया की शुरुआत वित्त मंत्रालय द्वारा पूर्व बजट की तैयारी से होती है। इससे पहले कि सरकार नए बजट का प्रस्ताव तैयार करे, मंत्रालयों और विभागों से उनके अगले वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्ताव और अनुमान प्राप्त किए जाते हैं। इसके अलावा, आर्थिक सर्वेक्षण भी तैयार किया जाता है, जो देश की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करता है।
  2. आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey): यह दस्तावेज़ संसद के बजट सत्र से पहले पेश किया जाता है, जो देश की आर्थिक स्थिति का विस्तृत आकलन प्रदान करता है। इसमें GDP, महंगाई दर, रोजगार, निर्यात, आयात, और अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों पर चर्चा होती है। आर्थिक सर्वेक्षण को तैयार करने में प्रमुख रूप से नीति आयोग और वित्त मंत्रालय की टीम शामिल होती है।
  3. विभागीय और मंत्रालयों से अनुमान प्राप्त करना: वित्त मंत्रालय विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से अगले वित्तीय वर्ष के लिए उनके आवश्यकताओं का अनुमान प्राप्त करता है। ये अनुमान संबंधित मंत्रालयों द्वारा पेश किए जाते हैं और इनका मूल्यांकन वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  4. बजट का मसौदा तैयार करना: मंत्रालयों और विभागों से प्राप्त आंकड़ों, प्रस्तावों और आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर वित्त मंत्रालय बजट का मसौदा तैयार करता है। इसमें केंद्र सरकार की आय (राजस्व) और व्यय (खर्च) का अनुमान होता है। इस मसौदे को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, और कैबिनेट से मंजूरी प्राप्त होती है।
  5. बजट का संसद में प्रस्तुति: बजट के मसौदे को वित्त मंत्री संसद में पेश करते हैं। आमतौर पर यह 1 फरवरी को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद, संसद में बजट पर चर्चा होती है, और संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में इसे मंजूरी प्राप्त होती है। बजट की मंजूरी के बाद, यह लागू होता है और सरकार अगले वित्तीय वर्ष के लिए योजना बनाती है।
  6. बजट के बाद की प्रक्रिया: बजट की पारित होने के बाद, वित्त मंत्रालय और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित किया जाता है। मंत्रालयों को उनके बजट आवंटित किए जाते हैं, और उन्हें निर्धारित खर्चों के तहत कार्य करना होता है। इसके बाद, सरकार की वित्तीय स्थिति की निगरानी की जाती है, और आवश्यकतानुसार योजनाओं में संशोधन किया जाता है।

योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर:

1. योजना व्यय (Plan Expenditure): योजना व्यय वह व्यय होता है, जो सरकार की विभिन्न योजनाओं और विकासात्मक कार्यक्रमों के लिए निर्धारित किया जाता है। यह व्यय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाता है। इसमें मुख्यतः निम्नलिखित खर्चे आते हैं:

  • बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ (सड़क, पुल, रेलवे, आदि)
  • शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य सामाजिक योजनाएँ
  • ग्रामीण विकास, कृषि सुधार, और औद्योगिकीकरण
  • नई योजनाएँ और विकासात्मक कार्यक्रम

योजना व्यय का उद्देश्य राष्ट्र के समग्र विकास और सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में सुधार करना है।

2. गैर-योजना व्यय (Non-Plan Expenditure): गैर-योजना व्यय वह खर्च होता है, जो किसी विशिष्ट योजना या विकासात्मक उद्देश्य के बिना सामान्य प्रशासन और सरकार के अन्य कार्यों के लिए होता है। इसमें सरकारी कार्यों के संचालन के लिए होने वाला नियमित खर्च शामिल होता है। इसमें निम्नलिखित खर्चे शामिल होते हैं:

  • कर्मचारियों की वेतन और पेंशन
  • ब्याज भुगतान (सरकारी ऋण पर)
  • रक्षा और अन्य सुरक्षा खर्च
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए बजटीय सहायता
  • कर्ज चुकाने के लिए आवंटन

गैर-योजना व्यय का उद्देश्य सरकार के प्रशासनिक कार्यों और अनिवार्य खर्चों को पूरा करना होता है, लेकिन इसका विकासात्मक उद्देश्य नहीं होता।

योजना व्यय और गैर-योजना व्यय में अंतर:

कृषि क्षेत्र

योजना व्यय

गैर-योजना व्यय

परिभाषा

योजना व्यय वह खर्च है, जो विकासात्मक योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए निर्धारित किया जाता है।

गैर-योजना व्यय वह खर्च है, जो नियमित प्रशासनिक कार्यों और अनिवार्य खर्चों के लिए किया जाता है।

उद्देश्य

देश के समग्र विकास, सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे में सुधार।

सरकार के प्रशासनिक कार्यों और कर्ज चुकाने के लिए आवश्यक खर्च।

उदाहरण

शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ।

कर्मचारियों का वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान, सुरक्षा खर्च।

विकासात्मक पहलू

विकासात्मक और कल्याणकारी योजनाओं के लिए व्यय।

विकास से संबंधित नहीं, नियमित प्रशासनिक खर्च।

प्रभाव

विकास दर में वृद्धि, सामाजिक और आर्थिक सुधार।

बजट पर दबाव बढ़ता है, क्योंकि यह विकासात्मक नहीं होता।

निष्कर्ष:

भारत सरकार के बजट बनाने की प्रक्रिया एक लंबी और विस्तृत प्रक्रिया है, जो देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने और विकासात्मक योजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक है। योजना व्यय और गैर-योजना व्यय के बीच स्पष्ट अंतर है, जहां योजना व्यय विकासात्मक कार्यों और योजनाओं के लिए होता है, वहीं गैर-योजना व्यय नियमित प्रशासनिक खर्चों के लिए होता है। बजट का उद्देश्य केवल राजस्व और व्यय का प्रबंधन नहीं होता, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य देश की समग्र आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाना होता है।

Q-5 "Infrastructure plays an important role in the economic development of a country." Discuss. एक देश के आर्थिक विकास में आधारभूत संरचना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है - विवेचना कीजिए

Answer-

आधारभूत संरचना (Infrastructure) का अर्थ है उन सभी सुविधाओं और सेवाओं का जाल, जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता और वृद्धि में सहायक होती हैं। इसमें परिवहन, ऊर्जा, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, संचार, और अन्य बुनियादी सेवाएं शामिल होती हैं। इनकी गुणवत्ता और उपलब्धता सीधे तौर पर देश के विकास को प्रभावित करती है।

1.      परिवहन और संचार: सड़क, रेल, हवाई जहाज और समुद्री परिवहन नेटवर्क के विस्तार से व्यापार और वस्तुओं की आवाजाही आसान होती है। इससे आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं और उद्योगों को कच्चा माल और तैयार उत्पाद बाजारों तक जल्दी और सस्ता पहुंचता है। इसके साथ-साथ बेहतर संचार नेटवर्क से सूचना का आदान-प्रदान तेज होता है, जिससे व्यापारिक निर्णय जल्दी और सही होते हैं।

2.      ऊर्जा आपूर्ति: ऊर्जा (बिजली, गैस, आदि) एक महत्वपूर्ण अवसंरचना है, क्योंकि उद्योगों, कृषि, और घरेलू उपयोग के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसके बिना किसी भी आर्थिक गतिविधि का संचालन संभव नहीं है। एक स्थिर और किफायती ऊर्जा आपूर्ति देश के विकास के लिए आवश्यक है।

3.      स्वास्थ्य और शिक्षा: एक स्वस्थ और शिक्षित कार्यबल किसी भी देश के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन होता है। यदि लोग अच्छे स्वास्थ्य में होते हैं और शिक्षा की सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, तो वे अधिक उत्पादक होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है।

4.      जल आपूर्ति और स्वच्छता: जल आपूर्ति और स्वच्छता सेवाओं का उचित प्रबंधन एक राष्ट्र के नागरिकों की जीवन गुणवत्ता को बढ़ाता है। यह केवल जन स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि कृषि और औद्योगिक गतिविधियों के लिए भी आवश्यक है।

5.      आवश्यक सेवाएँ और टेक्नोलॉजी: इंटरनेट, संचार नेटवर्क, और अन्य डिजिटल सुविधाएँ एक आधुनिक और कुशल अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएँ हैं। इस क्षेत्र में सुधार से व्यापार में पारदर्शिता और उत्पादकता बढ़ती है।

इस प्रकार, आधारभूत संरचना का हर पहलू देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। यदि यह संरचना मजबूत और सुचारू रूप से काम करती है, तो यह रोजगार सृजन, निवेश आकर्षण, और जीवन स्तर में सुधार का कारण बनती है, जो अंततः एक समृद्ध और स्थिर अर्थव्यवस्था के निर्माण में मदद करता है।

Q-6 What is 'Blood moon'? When does it happen? ब्लड मून क्या है और यह कब होता है?

Answer-

ब्लड मून एक खगोलीय घटना है जो तब होती है जब चंद्रमा पूर्ण चंद्रग्रहण (Total Lunar Eclipse) के दौरान पृथ्वी के ठीक छाया क्षेत्र में जाता है। इस घटना के दौरान चंद्रमा का रंग लाल या सुनहरे रंग में बदल जाता है, जिसे "ब्लड मून" कहा जाता है। इसे समझने के लिए हमें पहले चंद्रग्रहण के सिद्धांत को समझना होगा।

चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse) क्या है?

चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक ही सीधी रेखा में जाते हैं और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इसके तीन प्रमुख चरण होते हैं:

  1. पेनम्ब्रा (Penumbra): यह पृथ्वी की हल्की छाया होती है। इस चरण में चंद्रमा पर बहुत हल्का धुंधलापन देखा जा सकता है।
  2. उम्म्ब्रा (Umbra): यह पृथ्वी की गहरी छाया होती है। जब चंद्रमा पूरी तरह से उम्म्ब्रा में जाता है, तो उसे पूर्ण चंद्रग्रहण कहा जाता है।
  3. चंद्रग्रहण के दौरान रंग का बदलना: जब चंद्रमा पृथ्वी की गहरी छाया (उम्म्ब्रा) में प्रवेश करता है, तब सूर्य की रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती है। वायुमंडल में मौजूद कण (जैसे धूल और जलवाष्प) नीली और हरी रोशनी को अधिक अवशोषित कर लेते हैं, जबकि लाल रोशनी अधिक फैलती है। इसका कारण यह है कि लाल रंग की लाइट का तरंगदैर्ध्य अधिक होता है, और यह वायुमंडल से आसानी से गुजर सकती है। इसके परिणामस्वरूप चंद्रमा पर लाल या सुनहरी आभा दिखाई देती है, जिसे ब्लड मून कहा जाता है।

ब्लड मून कब और क्यों होता है?

ब्लड मून तब होता है जब:

  • पूर्ण चंद्रग्रहण होता है, यानी चंद्रमा पृथ्वी की पूरी छाया में जाता है।
  • सूर्य की रोशनी पृथ्वी के वायुमंडल से होकर चंद्रमा तक पहुंचती है, जिससे चंद्रमा की रंगत लाल या सुनहरी हो जाती है।

यह घटना हर साल कम से कम दो बार होती है, लेकिन हर बार इसे हर स्थान से नहीं देखा जा सकता। इसके लिए पृथ्वी पर खास जगहों पर इसे देखा जा सकता है, जहाँ चंद्रग्रहण का पूर्ण दृश्य होता है। ब्लड मून की घटनाएँ नियमित रूप से नहीं होतीं, क्योंकि यह एक विशेष खगोलीय स्थिति पर निर्भर करती हैं, जैसे सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा का एक समान रेखा में आना।

ब्लड मून के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

  • सांस्कृतिक दृष्टिकोण से: कई संस्कृतियों में ब्लड मून को एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय घटना माना जाता था। कुछ संस्कृतियों में इसे बुरे या शुभ संकेत के रूप में देखा गया। उदाहरण के तौर पर, प्राचीन सभ्यताएँ इसे देवताओं की नाराजगी या पृथ्वी पर किसी बड़े परिवर्तन का संकेत मानती थीं।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से: ब्लड मून की घटना खगोलशास्त्रियों के लिए एक सामान्य खगोलीय घटना है, जो चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा के रंग में बदलाव को दर्शाती है। यह घटना पूरी तरह से प्राकृतिक होती है और इसके पीछे कोई अपसामान्य कारण नहीं होते।

ब्लड मून और चंद्रग्रहण का समय

ब्लड मून की घटना कुछ विशेष समय पर घटित होती है, जब चंद्रग्रहण का पूर्ण रूप दिखाई देता है। यह एक अंतराल पर हर 2 से 3 साल में होती है। उदाहरण के लिए, चंद्रग्रहण का समय औसतन 1 घंटे से लेकर 1.5 घंटे तक हो सकता है, जबकि ब्लड मून का प्रभाव कुछ मिनटों तक ही रहता है। इस दौरान चंद्रमा की पूरी आभा बदलती है, और उसका रंग लाल या सुनहरी हो जाता है।

निष्कर्ष

ब्लड मून एक रोमांचक खगोलीय घटना है, जो चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा की रंगत में बदलाव के कारण होती है। यह घटना केवल खगोलशास्त्रियों के लिए, बल्कि सामान्य दर्शकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होती है। इसे सही समय और स्थान पर देखना एक अद्भुत अनुभव हो सकता है, जो प्रकृति की शक्ति और खगोलशास्त्र के रहस्यों को समझने का अवसर प्रदान करता है।

Q-7 What are the key objectives of India's moon mission program 'Chandrayaan-3'? भारत के चंद्रमा मिशन कार्यक्रम 'चंद्रयान-3' के प्रमुख उद्देश्य

Answer-

भारत का चंद्रयान-3 मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा चंद्रमा पर एक सफल लैंडिंग करने और वहां से वैज्ञानिक डेटा प्राप्त करने के उद्देश्य से भेजा गया था। यह चंद्रयान मिशन चंद्रयान-2 का अगला कदम था, जिसमें चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का प्रयास किया गया था। चंद्रयान-3 के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे:

1.      चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग: चंद्रयान-3 का सबसे बड़ा उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था। यह मिशन चंद्रमा पर उतरने के लिए भारत का तीसरा प्रयास था, और इसका प्रमुख उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में सफलतापूर्वक लैंड करना था।

2.      चंद्रमा की सतह का अध्ययन: इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह, उसके खगोलिय और भौतिक गुणों का अध्ययन करना था। चंद्रयान-3 से प्राप्त डेटा चंद्रमा के खनिज, मिट्टी और सतह की संरचना को समझने में मदद करता है।

3.      दक्षिणी ध्रुव का अन्वेषण: चंद्रयान-3 का विशेष ध्यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर था। यह क्षेत्र चंद्रमा के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत कम अध्ययन किया गया है और इसमें पानी (हाइड्रेटेड तत्व) या बर्फ के संभावित स्रोत हो सकते हैं, जो भविष्य में मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

4.      प्रौद्योगिकी का परीक्षण: चंद्रयान-3 ने भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता को साबित करने के लिए कई तकनीकों का परीक्षण किया, जिनमें सॉफ्ट लैंडिंग, रोवर के संचालन और चंद्रमा पर दूरबीन से डेटा प्राप्त करने के उपकरण शामिल थे।

5.      वैज्ञानिक अनुसंधान: इस मिशन के दौरान चंद्रमा पर स्थित विभिन्न खगोलीय और भौतिक घटकों की जानकारी प्राप्त की गई, जिससे चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में नए तथ्यों का पता चलने की उम्मीद थी।

6.      अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की प्रमुखता: चंद्रयान-3 भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता को और अधिक स्थापित करता है और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में पहचान दिलाता है।

निष्कर्ष: चंद्रयान-3 मिशन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने केवल चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की, बल्कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान की नई राहें खोलीं। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और विज्ञान में अग्रणी भूमिका को दर्शाता है।

Q-8 Cyber crimes are a big threat to national security. How can a country be protected from these crimes? साइबर अपराधों से देश की सुरक्षा को बड़ा खतरा है और इन अपराधों से देश को कैसे बचाया जा सकता है?

Answer-

साइबर अपराधों का खतरा

साइबर अपराधों से देश की सुरक्षा को एक बड़ा खतरा है क्योंकि इन अपराधों के माध्यम से महत्वपूर्ण सूचना, सरकारी डेटा, और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी चोरी की जा सकती है। साइबर अपराधी सरकारी प्रणालियों, बैंकों, वित्तीय संस्थानों, और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों को निशाना बनाकर देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, साइबर आतंकवाद, पहचान की चोरी, साइबर धमकियां, और नेटवर्क हैकिंग जैसी घटनाएं भी बड़े पैमाने पर हो सकती हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकती हैं।

साइबर अपराधों से बचाव के उपाय

1.      साइबर सुरक्षा प्रौद्योगिकियों का उपयोग: देश को साइबर अपराधों से बचाने के लिए उन्नत साइबर सुरक्षा प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें एन्क्रिप्शन, फायरवॉल, एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर, और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, जो साइबर अपराधियों के हमलों को रोकने में मदद करती हैं।

2.      सरकार की साइबर सुरक्षा पहल: भारतीय सरकार ने साइबर सुरक्षा को लेकर कई कदम उठाए हैं, जिनसे साइबर अपराधों से निपटा जा सकता है:

o    इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) एक्ट, 2000: इस कानून के तहत साइबर अपराधों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है। इसमें हैकिंग, डेटा चोरी, और इंटरनेट के माध्यम से किए गए अपराधों को सजा दी जाती है।

o    राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति (NCSP): भारत सरकार ने 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति को लागू किया, जिसका उद्देश्य देश की साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाना और साइबर हमलों से बचाव के लिए व्यापक रणनीतियाँ तैयार करना है।

o    साइबर सुरक्षा केंद्र (CERT-IN): यह केंद्र भारतीय सरकार का एक प्रमुख संस्थान है, जो साइबर सुरक्षा से संबंधित खतरों और घटनाओं की निगरानी करता है और संबंधित जानकारी प्रदान करता है। यह साइबर हमलों से निपटने के लिए विभिन्न उपायों का पालन करने में मदद करता है।

o    डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानून: भारतीय सरकार ने व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए कई नियमों और कानूनों को लागू किया है, जैसे कि पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, जो नागरिकों के डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करता है और उनके डेटा को साइबर अपराधों से बचाता है।

3.      साइबर जागरूकता अभियान: साइबर अपराधों से बचाव के लिए नागरिकों को साइबर सुरक्षा के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। इसके लिए सरकार और निजी संस्थाएँ साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण, शिक्षा और जागरूकता अभियानों का संचालन करती हैं। लोग यदि साइबर धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, और फिशिंग जैसे अपराधों के बारे में सचेत होंगे, तो इनसे बचाव करना आसान होगा।

4.      समय-समय पर सुरक्षा परीक्षण: सरकारी और निजी संस्थाओं को अपने नेटवर्क और सिस्टम का नियमित रूप से सुरक्षा परीक्षण (Penetration Testing) करना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार के साइबर हमले का पता चल सके और उसे रोका जा सके।

5.      कानूनी उपाय और दंड: साइबर अपराधों को नियंत्रित करने के लिए सरकार को कड़े कानूनी उपायों और दंड की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके लिए भारतीय कानून में साइबर अपराधियों को सजा देने के प्रावधान हैं, जो साइबर अपराधों को रोकने में प्रभावी हो सकते हैं।

6.      अंतरराष्ट्रीय सहयोग: साइबर अपराधों से निपटने के लिए देशों को आपस में सहयोग करना जरूरी है। भारत अन्य देशों के साथ साइबर अपराधों के खिलाफ सहयोग बढ़ा सकता है ताकि इन अपराधों की जांच और निवारण में एक वैश्विक दृष्टिकोण अपनाया जा सके।

निष्कर्ष :साइबर अपराधों से देश की सुरक्षा को बड़ा खतरा है, लेकिन भारतीय सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं। साइबर सुरक्षा प्रौद्योगिकियों का उपयोग, कड़े कानूनों का पालन, और साइबर जागरूकता अभियानों के माध्यम से देश को साइबर अपराधों से बचाया जा सकता है। इसके साथ-साथ नागरिकों को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करना और एक मजबूत सुरक्षा ढांचा तैयार करना भी महत्वपूर्ण है, ताकि साइबर अपराधों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके।

Q-9  How can India's security forces be strengthened? Give your suggestions. भारतीय सुरक्षा बलों को अधिक सक्षम कैसे बनाया जा सकता है?

Answer-

भारतीय सुरक्षा बलों को अधिक सक्षम बनाने के लिए कई क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। इनमें तकनीकी उन्नति, प्रशिक्षण, संसाधन, और मानसिक तैयारी जैसी महत्वपूर्ण पहलें शामिल हैं। निम्नलिखित उपायों से भारतीय सुरक्षा बलों को और अधिक सशक्त बनाया जा सकता है:

1. प्रौद्योगिकी का उपयोग और आधुनिकीकरण

  • स्मार्ट हथियार और तकनीकी उपकरण: भारतीय सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक हथियार, ड्रोन, रडार और अन्य तकनीकी उपकरण प्रदान किए जाने चाहिए। इनका उपयोग आतंकवाद, सीमा सुरक्षा, और अन्य खतरों से प्रभावी तरीके से निपटने में किया जा सकता है।
  • साइबर सुरक्षा: आज के डिजिटल युग में, साइबर हमले और डेटा चोरी जैसे खतरे बढ़ गए हैं। सुरक्षा बलों को साइबर सुरक्षा में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे साइबर आतंकवाद और अन्य डिजिटल खतरों से निपट सकें।

2. उन्नत प्रशिक्षण और शारीरिक तैयारी

  • विशेष प्रशिक्षण: भारतीय सुरक्षा बलों को विभिन्न प्रकार के खतरों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। जैसे कि आतंकवाद, ड्रग तस्करी, समुद्री सुरक्षा, और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत कार्य।
  • मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: सुरक्षा बलों के जवानों को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए उन्हें नियमित शारीरिक प्रशिक्षण के साथ मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कार्यशालाएँ और काउंसलिंग प्रदान करनी चाहिए।

3. समय पर संसाधन और उपकरणों की आपूर्ति

  • सुरक्षा बलों के पास पर्याप्त संसाधन और आधुनिक उपकरण होना आवश्यक है। सरकार को इनके लिए बजट में उचित वृद्धि करनी चाहिए ताकि सुरक्षा बल समय रहते आवश्यक सामान और उपकरण प्राप्त कर सकें।
  • सुरक्षा बलों का जीवनस्तर: जवानों की भत्ते, सुविधाएँ और कार्य परिस्थितियाँ बेहतर बनाई जानी चाहिए, ताकि उनकी मनोबल उच्च रहे और वे अपनी पूरी क्षमता से काम कर सकें।

4. सुरक्षा बलों की भर्ती और चयन प्रक्रिया में सुधार

  • कुशल जवानों की भर्ती: भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और सक्षम बनाना चाहिए ताकि केवल योग्य और फिट उम्मीदवारों का चयन हो सके। इसके लिए भर्ती परीक्षा, शारीरिक परीक्षण और मानसिक परीक्षण को और अधिक कठोर और वैज्ञानिक तरीके से डिजाइन किया जा सकता है।
  • लिंग समानता और विविधता: महिलाओं को भी सुरक्षा बलों में बराबरी का अवसर दिया जाना चाहिए, और उनका समुचित प्रशिक्षण और सशक्तिकरण किया जाना चाहिए।

5. सुरक्षा बलों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग

  • अंतर-सेवा समन्वय: भारतीय सेना, पुलिस, अर्धसैनिक बलों और खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग होना चाहिए। संयुक्त प्रशिक्षण और आपसी सहयोग से एक ठोस सुरक्षा ढांचा तैयार किया जा सकता है।
  • स्थानीय पुलिस और सेना के बीच तालमेल: सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए पुलिस और सेना के बीच सहयोग आवश्यक है। यह आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी चुनौतियों का समाधान करने में मदद करेगा।

6. मानवाधिकारों का सम्मान और सही दिशा में नेतृत्व

  • मानवाधिकारों का पालन: भारतीय सुरक्षा बलों को उच्चतम मानवाधिकार मानकों का पालन करते हुए कार्य करना चाहिए। यह सैनिकों और आम नागरिकों के बीच विश्वास बढ़ाने में मदद करेगा।
  • नैतिक और सशक्त नेतृत्व: भारतीय सुरक्षा बलों में सक्षम और नैतिक नेतृत्व का होना जरूरी है, ताकि जवानों को सही दिशा मिल सके और वे अपने कार्यों में उत्कृष्टता दिखा सकें।

7. प्रेरणा और सम्मान

  • सुरक्षा बलों के जवानों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया जाना चाहिए। पुरस्कार और पदक जैसे प्रोत्साहन जवानों का मनोबल बढ़ाने में मदद करते हैं।
  • अच्छी कार्य संस्कृति: सैनिकों को एक अच्छी कार्य संस्कृति और परिवार के जैसा माहौल देना चाहिए, ताकि वे अपने कार्य में गर्व महसूस करें।

निष्कर्ष :भारतीय सुरक्षा बलों को और अधिक सक्षम बनाने के लिए सरकार, समाज और सुरक्षा बलों को मिलकर कार्य करना चाहिए। उन्हें आवश्यक प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण, संसाधन, और सम्मान प्रदान करने से उनकी क्षमता में वृद्धि होगी और वे अपने कर्तव्यों को और प्रभावी ढंग से निभा सकेंगे। इस तरह से हम भारतीय सुरक्षा बलों को एक मजबूत, सक्षम और प्रेरित सेना बना सकते हैं, जो देश की सुरक्षा में हमेशा तत्पर रहे।

Q-10 What is India's stand on the issues of nuclear proliferation ? Explain. आणिवक प्रसार के मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण

Answer-

"आणिवक प्रसार" का अर्थ है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और शोध के परिणामों को साझा करना और इनका प्रसार करना, ताकि वैश्विक स्तर पर विकास को बढ़ावा दिया जा सके। इसमें डेटा, सूचनाओं, और वैज्ञानिक नवाचारों का आदान-प्रदान शामिल होता है। भारत का आणिवक प्रसार के मुद्दों पर दृष्टिकोण सकारात्मक और सहायक रहा है, और भारत ने इस क्षेत्र में कई पहल की हैं।

भारत का दृष्टिकोण निम्नलिखित पहलुओं पर आधारित है:

1. वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना

भारत का मानना है कि वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार का प्रसार वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी है। भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। विशेषकर, भारत ने "स्मार्ट सिटी", "स्वच्छ भारत मिशन", "क्लाइमेट चेंज", "नवाचार और तकनीकी विकास" जैसे क्षेत्रों में वैश्विक सहयोग को समर्थन दिया है।

2. विकसित देशों के साथ सहयोग

भारत का दृष्टिकोण यह है कि आणिवक प्रसार के लिए विकसित देशों के साथ सहयोग आवश्यक है। भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भाग लिया है, जैसे कि "नासा", "यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी", और अन्य वैश्विक शोध संगठनों के साथ साझेदारी। भारत का उद्देश्य है कि वह वैश्विक शोध और विकास में भागीदार बने और इससे प्राप्त ज्ञान और तकनीक का लाभ अपने देश के विकास में उपयोग करे।

3. विकसित और विकासशील देशों के बीच ज्ञान साझा करना

भारत यह मानता है कि आणिवक प्रसार का लाभ केवल विकसित देशों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे विकासशील देशों तक भी पहुँचाना चाहिए। भारत ने "भारत-एशिया", "भारत-अफ्रीका" जैसे मंचों पर अन्य विकासशील देशों के साथ साझेदारी की है, ताकि वे वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान का लाभ उठा सकें।

4. खगोलशास्त्र, अंतरिक्ष और जलवायु विज्ञान में अग्रणी भूमिका

भारत का दृष्टिकोण आणिवक प्रसार में विशेष रूप से खगोलशास्त्र, अंतरिक्ष, और जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय रूप से भागीदार बनने का है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम, जैसे "चंद्रयान", "मंगलयान", और "नाविक" (NavIC), केवल भारत के वैज्ञानिक समुदाय को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत की भूमिका को मजबूत कर रहे हैं।

5. वैज्ञानिक पत्रिकाओं और डेटा का साझा करना

भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं और डेटा प्लेटफ़ॉर्मों के माध्यम से अनुसंधान परिणामों को साझा करने की पहल की है। "भारतीय विज्ञान संस्थान" (IISc) और "भारतीय विज्ञान कांग्रेस" जैसी संस्थाएँ नियमित रूप से वैश्विक शोध पत्रिकाओं और कांफ्रेंसों में भाग लेकर भारतीय अनुसंधान को साझा करती हैं।

6. तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण में सहयोग

भारत की सरकार ने आणिवक प्रसार के तहत तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग किया है। इसके माध्यम से भारत अन्य देशों के विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने में मदद कर रहा है। भारत में कई "संयुक्त शोध कार्यक्रम" और "विदेशी छात्रों के लिए विश्वविद्यालय सहयोग" के प्रयास किए गए हैं, ताकि वैश्विक स्तर पर तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा का स्तर ऊंचा किया जा सके।

7. अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में भागीदारी

भारत का दृष्टिकोण पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी आणिवक प्रसार को बढ़ावा देने का है। भारत ने "पेरिस जलवायु समझौता" और "कोप 26 सम्मेलन" में सक्रिय भागीदारी की है, और विश्वभर के देशों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के समाधान की दिशा में काम कर रहा है।

निष्कर्ष :भारत का आणिवक प्रसार के मुद्दों पर दृष्टिकोण यह है कि विज्ञान, तकनीकी, और अनुसंधान के परिणामों का वैश्विक स्तर पर साझा करना आवश्यक है। इसके माध्यम से केवल वैश्विक चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है, बल्कि इससे विकासशील देशों को भी विकास के अवसर मिलते हैं। भारत इस दिशा में वैश्विक सहयोग, सूचना साझा करने, और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है, और इसने वैश्विक मंचों पर अपनी भूमिका को मजबूत किया है।

SECTION – B

Q-11 State the important objectives of NITI Aayog. How are the principles and functions of NITI Aayog different from those of the planning commission? Comment. NITI आयोग के महत्वपूर्ण उद्देश्य और योजना आयोग से इसके सिद्धांतों और कार्यों में अंतर

Answer-

NITI आयोग के महत्वपूर्ण उद्देश्य

NITI आयोग (राष्ट्रीय योजना एवं सामाजिक-आर्थिक बदलाव आयोग) भारत सरकार द्वारा 2015 में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य समग्र और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और राज्यों तथा केंद्र सरकार के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना है। NITI आयोग के कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  1. समान विकास के लिए रणनीतियाँ तैयार करना: NITI आयोग का मुख्य उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के बीच समावेशी विकास सुनिश्चित करना है। आयोग राज्यों के साथ मिलकर आर्थिक योजनाएँ और नीतियाँ तैयार करता है, ताकि सभी क्षेत्रों का समग्र विकास हो सके।
  2. राज्य सरकारों के साथ सहयोग: NITI आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक मध्यस्थ का काम करता है। इसका उद्देश्य राज्यों को अपनी योजनाएँ बनाने और उनके कार्यान्वयन में केंद्र से सहयोग प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन और समर्थन देना है।
  3. नीतियों और योजनाओं की निगरानी: NITI आयोग नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी करता है और राज्यों के विकास की स्थिति पर नजर रखता है। यह यह सुनिश्चित करता है कि योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन हो और उनका प्रभावी परिणाम सामने आए।
  4. वैश्विक और राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन: आयोग विभिन्न देशों और राज्यों में होने वाले आर्थिक प्रयोगों और सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन करता है और उन्हें भारत में लागू करने के लिए सलाह देता है।
  5. लंबी अवधि के विकास लक्ष्यों की योजना: आयोग भारत के लिए दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों और नीतियों की योजना बनाता है, जैसे कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति। यह देश के समग्र विकास के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण तैयार करता है।
  6. नवीनता, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: NITI आयोग विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और नवाचार के क्षेत्र में नीतियाँ तैयार करता है ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सके।

NITI आयोग और योजना आयोग के सिद्धांतों और कार्यों में अंतर

1. संरचना में अंतर:

  • योजना आयोग: यह एक सरकारी निकाय था, जिसका प्रमुख कार्य आर्थिक योजना बनाना और संसाधनों का आवंटन करना था। इसका प्रमुख ध्यान पांच वर्षीय योजनाओं के तहत देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना था।
  • NITI आयोग: यह एक नीति-निर्माण थिंक टैंक है, जिसे योजना आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य नीति, रणनीति और समन्वय का निर्माण करना है, जो सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच सहयोग बढ़ाए।

2. कार्यों में अंतर:

  • योजना आयोग: योजना आयोग का मुख्य कार्य थादेश के संसाधनों का समुचित आवंटन, राष्ट्रीय योजनाओं का निर्माण, और विकासात्मक कार्यों के लिए दिशा-निर्देशों का निर्धारण। यह केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित योजनाओं के तहत राज्यों को दिशा दिखाता था।
  • NITI आयोग: NITI आयोग का कार्य अधिक सहयोगात्मक है। यह राज्य सरकारों के साथ मिलकर योजना और नीतियाँ बनाता है, और केंद्र सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन में अधिक लचीलापन प्रदान करता है। इसका उद्देश्य राज्यों की स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।

3. सिद्धांतों में अंतर:

  • योजना आयोग: योजना आयोग एक शीर्ष-नीति निर्धारण संस्था थी, जो केंद्र सरकार के अधीन काम करती थी। यह राज्यों को एक निश्चित दिशा में कार्य करने के लिए बाध्य करता था और सरकार की योजनाओं का पालन करवाता था।
  • NITI आयोग: NITI आयोग में राज्यों को एक स्वतंत्र और सक्रिय भूमिका दी गई है। इसका सिद्धांत "सहयोग और सहमति" (Cooperative Federalism) है, जिससे राज्यों को केवल नीति निर्माण में भागीदारी मिलती है, बल्कि राज्यों के विकास की दिशा में भी उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जाती है।

4. कार्य प्रणाली में अंतर:

  • योजना आयोग: यह योजनाओं की सख्त रूप से निगरानी करता था और संसाधनों का आवंटन केंद्रीय दृष्टिकोण से करता था। इसके फैसले कठोर थे और राज्य सरकारों को तय दिशा में काम करना पड़ता था।
  • NITI आयोग: NITI आयोग के तहत राज्यों को योजना और नीति निर्माण में अपनी राय देने की स्वतंत्रता होती है। आयोग का कार्य "नौकरी देने और मार्गदर्शन करने" का है, कि एकतरफा निर्णय लेने का।

5. नीति और कार्यान्वयन में अंतर:

  • योजना आयोग: योजनाओं को लागू करने के लिए केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन अनिवार्य था। इसके निर्णयों पर केंद्र का नियंत्रण था।
  • NITI आयोग: आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर संवाद और समन्वय के लिए काम करता है, और निर्णय लेने की प्रक्रिया में दोनों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष :NITI आयोग और योजना आयोग दोनों के उद्देश्य समान थेदेश का विकास। हालांकि, दोनों की कार्य प्रणाली और सिद्धांतों में महत्वपूर्ण अंतर हैं। जबकि योजना आयोग एक केंद्रीयकृत दृष्टिकोण अपनाता था, NITI आयोग ने राज्यों को अधिक स्वायत्तता और भागीदारी का अवसर दिया है। NITI आयोग का उद्देश्य अधिक सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना है, जो राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय की दिशा में कार्य करता है।

Q-12 Explain the concept of inclusive growth. What are the issues and challenges with inclusive growth in India? Explain. समावेशी विकास (Inclusive Growth) का सिद्धांत और भारत में इसके मुद्दे और चुनौतियाँ

Answer-

समावेशी विकास (Inclusive Growth) का सिद्धांत

समावेशी विकास का अर्थ है, आर्थिक विकास की ऐसी प्रक्रिया जिसमें विकास के लाभ समाज के सभी वर्गों, विशेषकर गरीबों, पिछड़ों, और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक पहुँचते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समग्र अर्थव्यवस्था का लाभ सभी लोगों को समान रूप से मिले और समाज में असमानताएँ कम हों। समावेशी विकास का सिद्धांत केवल आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देता है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता को भी प्राथमिकता देता है। इसका लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दूर करना है, जिससे समाज में हर वर्ग को विकास में अपनी भूमिका और हिस्सेदारी मिल सके।

समावेशी विकास के कुछ मुख्य पहलु निम्नलिखित हैं:

  1. सभी वर्गों का समावेश: इसमें विभिन्न जातीय, धार्मिक, और सामाजिक समूहों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  2. समान अवसरों की उपलब्धता: इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और अन्य सामाजिक सेवाओं में समान अवसरों का प्रावधान किया जाता है।
  3. वित्तीय समावेशन: गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो, जैसे बैंक खाता खोलना, ऋण प्राप्त करना, आदि।
  4. आर्थिक असमानता में कमी: समावेशी विकास में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि अमीर और गरीब के बीच की खाई कम हो, और सभी का जीवन स्तर सुधरे।

भारत में समावेशी विकास के मुद्दे और चुनौतियाँ

भारत में समावेशी विकास के सिद्धांत को लागू करने में कई गंभीर मुद्दे और चुनौतियाँ सामने आती हैं। ये मुद्दे केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक भी हैं। कुछ प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

1. आर्थिक असमानता और गरीबी

भारत में आज भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। देश के विकास में तेजी आई है, लेकिन यह विकास बहुत असमान है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों, जातीय और धार्मिक समूहों, तथा सामाजिक वर्गों के बीच आर्थिक असमानता बनी हुई है। यह असमानता समावेशी विकास की राह में एक बड़ी चुनौती है। उच्च आय वर्ग और निम्न आय वर्ग के बीच की खाई बहुत चौड़ी है, जिससे गरीबों तक विकास के लाभ नहीं पहुँच पा रहे हैं।

2. शिक्षा और कौशल विकास की कमी

भारत में शिक्षा का स्तर अब भी बहुत असमान है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है और वहाँ के लोग योग्य कौशल प्राप्त करने में असमर्थ हैं। यह रोजगार के अवसरों को सीमित करता है और गरीबों को विकास में भागीदार बनने से रोकता है। बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास के, व्यक्ति अपने जीवन स्तर में सुधार नहीं कर सकते। यही कारण है कि समावेशी विकास को बढ़ावा देने में शिक्षा एक बड़ी बाधा है।

3. स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता भी बहुत असमान है। शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर हैं, जबकि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में यह सुविधाएँ सीमित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी, कम गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ, और उच्च चिकित्सा खर्च गरीबों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। अच्छे स्वास्थ्य सेवाओं के बिना, गरीब और पिछड़े वर्गों को विकास की प्रक्रिया में भागीदारी करने में कठिनाई होती है।

4. संरचनात्मक बेरोजगारी

भारत में बेरोजगारी का स्तर उच्च है, खासकर युवाओं और महिलाओं के बीच। बेरोजगारी सिर्फ अवसरों की कमी नहीं है, बल्कि यह कौशल की कमी का परिणाम भी है। कई क्षेत्रों में शिक्षा और कौशल का अभाव है, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पाती है। समावेशी विकास के लिए यह आवश्यक है कि रोजगार सृजन की नीति सही दिशा में हो, ताकि सभी वर्गों को रोजगार मिल सके।

5. वित्तीय समावेशन की कमी

भारत में वित्तीय समावेशन का स्तर अब भी कम है। बड़ी संख्या में लोग बैंकिंग सेवाओं से बाहर हैं, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े वर्गों के लोग। बिना वित्तीय सेवाओं के, लोग छोटे-छोटे व्यवसाय शुरू करने या आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने में असमर्थ होते हैं। वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना समावेशी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

6. सामाजिक भेदभाव और असमानताएँ

भारतीय समाज में जाति, धर्म, लिंग और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव और असमानताएँ व्याप्त हैं। यह असमानताएँ समावेशी विकास में एक बड़ी बाधा हैं। महिलाओं को समान अवसरों से वंचित किया जाता है, जबकि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग भी समाज में भेदभाव का शिकार होते हैं। इन भेदभावों को समाप्त करना और समान अवसर प्रदान करना समावेशी विकास के लिए आवश्यक है।

7. नौकरशाही और प्रशासनिक अड़चनें

भारत में सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन कई बार धीमा और जटिल होता है। भ्रष्टाचार, नौकरशाही की अड़चनें और कागजी कार्यवाही विकास के कामों में रुकावट डालती हैं। योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन होने के कारण गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों तक लाभ नहीं पहुँच पाता।

8. प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण

भारत में प्राकृतिक संसाधनों का वितरण भी असमान है। जबकि कुछ क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं, कुछ क्षेत्रों में संसाधनों की कमी है। इससे आर्थिक विकास में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं। यह असमान वितरण भी समावेशी विकास को चुनौती देता है।

9. विकास के लिए स्थिर और मजबूत नीतियाँ

समावेशी विकास के लिए स्थिर, समग्र और दीर्घकालिक नीतियाँ और योजनाएँ आवश्यक हैं। हालांकि, भारतीय सरकार के कई प्रयासों के बावजूद नीतियों में निरंतर बदलाव और अव्यवस्था विकास की गति को धीमा कर देती है। नीतियों का सही दिशा में स्थिरता की कमी, गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए मदद में बाधक बनती है।


निष्कर्ष :समावेशी विकास भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है, लेकिन इसके साथ जुड़े मुद्दों और चुनौतियाँ बहुत जटिल हैं। गरीबी, बेरोजगारी, असमान शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, सामाजिक भेदभाव, और वित्तीय समावेशन की कमी जैसी समस्याएँ समावेशी विकास को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए, भारत को केवल नीतियों को सुधारने की आवश्यकता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के लिए समान अवसर और संसाधन सुनिश्चित करने होंगे। समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए, एक समग्र और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो सभी वर्गों को विकास की प्रक्रिया में समान रूप से शामिल कर सके।

Q-13 Describe the various efforts being made in India to achieve the 'Sustainable Development Goals'. भारत में सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - SDGs) को प्राप्त करने के लिए किए जा रहे विभिन्न प्रयास

Answer-

सतत विकास लक्ष्य (SDGs) संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में अपनाए गए 17 वैश्विक लक्ष्य हैं, जो 2030 तक गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय गिरावट, और शांति और न्याय के मुद्दों को संबोधित करने के लिए निर्धारित किए गए हैं। इन लक्ष्यों का उद्देश्य समग्र, समावेशी और सतत विकास सुनिश्चित करना है। भारत ने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई स्तरों पर विविध प्रयास किए हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास के संतुलन को बनाए रखने का लक्ष्य रखते हैं।

भारत में SDGs की प्राप्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों को निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है:

1. गरीबी उन्मूलन (Poverty Eradication)

  • प्रधानमंत्री आवास योजना: यह योजना ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबों को आवास उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई है, जिससे गरीबी में कमी आए।
  • उज्ज्वला योजना: इस योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन प्रदान किया जा रहा है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभ हो।
  • मनरेगा (MGNREGA): महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को रोजगार प्रदान किया जाता है, ताकि वे अपना जीवनयापन कर सकें।

2. शिक्षा और स्वास्थ्य (Quality Education and Health)

  • सर्व शिक्षा अभियान: इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा का अवसर देना है, ताकि प्रत्येक नागरिक को शिक्षा प्राप्त हो और वह SDGs को प्राप्त करने में भागीदार बन सके।
  • आयुष्मान भारत योजना: यह योजना देश के गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराती है, जिससे वे गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल का लाभ उठा सकें।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): इस मिशन का उद्देश्य ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना है।

3. लिंग समानता (Gender Equality)

  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान: यह अभियान लड़कियों के अधिकारों और शिक्षा को बढ़ावा देता है, ताकि महिलाओं और लड़कियों के लिए समान अवसर प्रदान किए जा सकें।
  • महिला स्वावलंबन योजनाएँ: भारत में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाएँ चल रही हैं, जैसे कि स्टैंड-अप इंडिया, प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना, और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, जिनसे महिलाओं को रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है।

4. स्वच्छता और जल (Clean Water and Sanitation)

  • स्वच्छ भारत अभियान: यह अभियान देशभर में स्वच्छता को बढ़ावा देता है और खुले में शौच की समस्या को खत्म करने के लिए काम करता है। इसके तहत लाखों शौचालयों का निर्माण किया गया है।
  • जल जीवन मिशन: इस मिशन का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल द्वारा स्वच्छ जल उपलब्ध कराना है, ताकि जल संकट की समस्या का समाधान हो सके और जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।

5. जलवायु परिवर्तन (Climate Action)

  • भारत के राष्ट्रीय जलवायु क्रियावली योजना (NDCs): भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाई है, जिसमें 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए लक्ष्यों का निर्धारण किया गया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के लिए योजना: भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा (solar, wind, etc.) उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है, ताकि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो और पर्यावरणीय प्रभाव घटे।

6. आर्थिक वृद्धि और रोजगार (Economic Growth and Decent Work)

  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: यह योजना छोटे और मध्यम उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराती है, ताकि वे अपने व्यवसाय को बढ़ा सकें और रोजगार सृजन में योगदान कर सकें।
  • स्टार्ट-अप इंडिया: यह पहल नवाचार, उद्यमिता और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देती है, ताकि युवा पीढ़ी को रोजगार के नए अवसर मिल सकें और आर्थिक वृद्धि में योगदान हो सके।

7. समावेशी और समान समाज (Reduced Inequality)

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: भारत में विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ हैं, जैसे प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं।
  • जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रयास: भारत ने SC, ST और OBC वर्गों के लिए आरक्षण प्रणाली लागू की है, जिससे उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सके।

8. सतत शहर और समुदाय (Sustainable Cities and Communities)

  • स्मार्ट सिटी मिशन: यह मिशन शहरी विकास को बढ़ावा देने के लिए स्मार्ट, सशक्त और प्रौद्योगिकी-आधारित शहरों का निर्माण करता है। इसके तहत शहरों में बेहतर परिवहन, स्वास्थ्य सुविधाएँ, जल आपूर्ति, स्वच्छता, और अन्य बुनियादी ढाँचे का विकास किया जा रहा है।
  • आधुनिक शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों में सतत और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए योजनाएँ बनाई जा रही हैं, जैसे कि नागरिक सेवा सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ

9. संसाधनों का उचित उपयोग (Responsible Consumption and Production)

  • पर्यावरण संरक्षण: भारत ने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे नदी पुनरुद्धार योजनाएँ, जल संरक्षण परियोजनाएँ, और ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम
  • कचरा प्रबंधन: भारत में कचरे के पुनर्चक्रण और निपटान के लिए कई योजनाएँ लागू की जा रही हैं, जैसे स्वच्छ भारत मिशन, जो कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण पर जोर देता है।

10. शांति, न्याय और मजबूत संस्थाएँ (Peace, Justice and Strong Institutions)

  • कानूनी सशक्तिकरण: भारत ने नागरिकों के कानूनी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे न्यायिक सुधार और लिंग समानता के लिए कानूनी प्रावधान
  • नवीनतम तकनीकों का उपयोग: भारतीय सरकार ने डिजिटलीकरण के माध्यम से सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए प्रयास किए हैं, जैसे -गवर्नेंस, आधार, और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम।

निष्कर्ष :भारत ने सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए विभिन्न योजनाओं, नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हालांकि, इन लक्ष्यों को पूरा करने में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे संसाधनों की कमी, असमानता, और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता। फिर भी, सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और सार्वजनिक सहयोग से भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में लगातार बढ़ रहा है।

Q-14 "Despite various measures to address food security, major challenges remain." Explain with reference to India. भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ और उपाय

Answer-

खाद्य सुरक्षा का अर्थ है, सभी लोगों को सभी समयों में पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार प्राप्त हो, ताकि वे एक स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी सकें। भारत ने खाद्य सुरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं, लेकिन इसके बावजूद खाद्य सुरक्षा को लेकर कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। यह लेख खाद्य सुरक्षा से संबंधित भारत की वर्तमान स्थिति और प्रमुख चुनौतियों को विस्तार से समझाता है।

भारत में खाद्य सुरक्षा के उपाय

भारत ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएँ और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनका उद्देश्य गरीबों और वंचित वर्गों तक पोषक और सस्ती खाद्य सामग्री पहुँचाना है। प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इस कानून के तहत, सरकार देश के लगभग 67% लोगों को सस्ती दरों पर अनाज प्रदान करती है। इसका उद्देश्य गरीबों को उचित मूल्य पर अनाज उपलब्ध कराना है। यह योजना लगभग 81 करोड़ लोगों को लाभान्वित करती है।
  2. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): यह योजना कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई थी और इसके तहत गरीब परिवारों को मुफ्त अनाज वितरित किया गया। यह योजना अब भी जारी है, जिससे गरीबों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  3. मिड डे मील योजना: इस योजना का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों को पोषक आहार प्रदान करना है, ताकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास हो सके और वे कक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
  4. राशन प्रणाली (Public Distribution System - PDS): PDS के तहत सरकार उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से गरीबों और कमजोर वर्गों को राशन प्रदान करती है। यह खाद्य सुरक्षा का एक प्रमुख माध्यम है।

खाद्य सुरक्षा की प्रमुख चुनौतियाँ

हालांकि भारत में खाद्य सुरक्षा को लेकर कई प्रयास किए गए हैं, फिर भी इस क्षेत्र में कई प्रमुख चुनौतियाँ हैं, जिनसे निपटना आवश्यक है:

1. गरीबी और असमानता

भारत में आज भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। गरीबी के कारण वे भोजन की आवश्यकता पूरी नहीं कर पाते हैं, और खाद्य सुरक्षा की योजना का लाभ भी नहीं उठा पाते। वहीं, आर्थिक असमानता की वजह से कुछ वर्गों को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार नहीं मिल पाता।

2. भ्रष्टाचार और प्रणालीगत कमजोरियाँ

राशन वितरण प्रणाली (PDS) में भ्रष्टाचार एक प्रमुख समस्या है। कई बार अनाज का वितरण सही तरीके से नहीं होता, और गरीबों तक लाभ नहीं पहुँचता। राशन की दुकानों पर कालाबाजारी, अनाज की हेरफेर और वितरण में कमी इस प्रणाली की प्रभावशीलता को प्रभावित करते हैं।

3. खाद्यान्न का अपव्यय और कचरा

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के बावजूद, बड़ी मात्रा में खाद्य सामग्री बर्बाद होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 67 मिलियन टन खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है। यह बर्बादी विशेष रूप से उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में खामियों के कारण होती है, जिससे खाद्य सुरक्षा की प्रणाली पर दबाव बढ़ता है।

4. कृषि संकट और जलवायु परिवर्तन

भारत की खाद्य सुरक्षा को एक अन्य बड़ी चुनौती कृषि संकट और जलवायु परिवर्तन से है। बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधनों के बीच, कृषि उत्पादकता को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसमी बारिश, सूखा और बाढ़ जैसी स्थितियाँ कृषि उत्पादन को प्रभावित करती हैं, जिससे खाद्यान्न की उपलब्धता कम हो सकती है।

5. आहार में पोषक तत्वों की कमी

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सस्ती दरों पर अनाज वितरित किया जाता है, लेकिन इन अनाजों में पोषण की कमी होती है। गेहूँ और चावल जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में आवश्यक विटामिन्स, मिनरल्स और अन्य पोषक तत्वों की कमी होती है, जिससे कुपोषण की समस्या बनी रहती है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं में आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की कमी एक बड़ी चुनौती है।

6. भ्रष्टाचार और सरकारी योजनाओं की कार्यान्वयन में असफलता

कई बार सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं और कार्यक्रमों का सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं हो पाता है। योजनाओं का लक्ष्य गरीबों तक भोजन पहुँचाना है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता। खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में कई स्तरों पर कमियाँ होती हैं, जो लाभार्थियों तक अनाज पहुँचने में रुकावट डालती हैं।

7. शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी असमानताएँ

शहरीकरण के बढ़ने के साथ, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित खाद्य उत्पादन कम हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा का स्तर बेहतर हो सकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए उचित समर्थन की कमी और खाद्य आपूर्ति की व्यवस्था कमजोर है। इस असमानता को दूर करने के लिए अधिक ध्यान और सुधार की आवश्यकता है।

8. बढ़ती जनसंख्या

भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, और इससे खाद्यान्न की मांग लगातार बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बन गई है। संसाधनों की कमी और बढ़ती मांग के बीच संतुलन बनाना कठिन हो रहा है।

निष्कर्ष :भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, कृषि संकट, जलवायु परिवर्तन, और बढ़ती जनसंख्या जैसी चुनौतियाँ इस क्षेत्र में समस्याएँ उत्पन्न करती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को खाद्य सुरक्षा योजना के कार्यान्वयन को मजबूत करना होगा, कृषि क्षेत्र को समर्थन देना होगा, और पोषण पर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा, सामाजिक असमानताओं को कम करने और खाद्य बर्बादी को नियंत्रित करने के उपायों पर भी काम करना होगा, ताकि भारत में सभी नागरिकों को पर्याप्त और पोषक आहार मिल सके।

Q-15 The Public Distribution System (PDS) has proved to be the most effective instrument of Government policy over the years in stabilizing prices and making food available to consumers at affordable prices." Explain the statement. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) - सरकारी नीति का प्रभावी उपाय

Answer-

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS) भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद लोगों को उचित मूल्य पर अनाज और अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है, ताकि वे सस्ते और पोषक खाद्यान्न प्राप्त कर सकें। PDS ने वर्षों से मूल्य स्थिरीकरण में मदद की है और उपभोक्ताओं के लिए खाद्य सामग्री को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया है। यह व्यवस्था खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है।

PDS के प्रमुख उद्देश्य और कार्यक्षेत्र:

1.      खाद्य सामग्री का उचित मूल्य पर वितरण: PDS का सबसे मुख्य उद्देश्य गरीबों को अनाज, गेहूँ, चावल, चीनी, तेल, दाल, इत्यादि जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थ उचित और सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराना है। यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास महंगे बाजार मूल्य पर खाद्य सामग्री खरीदने की क्षमता नहीं होती।

2.      मूल्य स्थिरीकरण: PDS बाजार में अनाज के मूल्य को स्थिर करने में मदद करता है। जब बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने लगती हैं, तो PDS के माध्यम से सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराकर सरकार मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करती है। इससे महंगाई पर काबू पाया जाता है और उपभोक्ताओं को राहत मिलती है।

3.      गरीबी और कुपोषण में कमी: PDS गरीब वर्ग को समय पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराता है, जिससे उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। PDS के माध्यम से गरीबों और कमजोर वर्गों को सस्ता और पोषक आहार मिलता है, जिससे देश में कुपोषण की समस्या में भी कुछ हद तक कमी आई है।

4.      विपणन (Marketing) और आपूर्ति श्रृंखला का सशक्तीकरण: PDS, सरकारी गेहूँ, चावल, चीनी आदि का अधिग्रहण करता है और उन्हें उचित मूल्य पर वितरण नेटवर्क के माध्यम से आम उपभोक्ताओं तक पहुँचाता है। यह व्यवस्था आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाती है और विपणन व्यवस्था को नियंत्रित करती है, जिससे खाद्य पदार्थों की सही मात्रा और गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

PDS के प्रभावशीलता के कारण:

1.      कुपोषण और गरीबी में कमी: PDS के माध्यम से खाद्य सामग्री की उपलब्धता में वृद्धि हुई है, जिससे गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लाखों लोग पोषण संबंधी आवश्यकताएँ पूरी कर पा रहे हैं। PDS ने विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए एक जीवन रेखा का काम किया है, जो अन्यथा कुपोषण का शिकार हो सकते थे।

2.      खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) को नियंत्रित करना: जब बाजारों में खाद्य कीमतें बढ़ती हैं, तो PDS के द्वारा खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सस्ती दरों पर सुनिश्चित की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि गेहूँ और चावल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है, तो PDS के माध्यम से इन्हें सस्ती दरों पर वितरित कर दिया जाता है, जिससे बाजार में कीमतों को स्थिर किया जा सकता है।

3.      आर्थिक असमानता में कमी: PDS ने विशेष रूप से निम्न और मध्यवर्गीय परिवारों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल वे लोग ही महंगे दरों पर खाद्य सामग्री नहीं खरीद पा रहे, जिन्हें उच्च आय है, बल्कि गरीब और वंचित वर्ग के लोग भी सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री प्राप्त कर पा रहे हैं।

4.      आपातकालीन स्थितियों में सहारा: प्राकृतिक आपदाएँ, सूखा, या अन्य संकटपूर्ण स्थितियों में PDS एक सहायक तंत्र के रूप में कार्य करता है। उदाहरण के लिए, बाढ़ या सूखे के समय, जब किसानों का उत्पादन प्रभावित होता है, तो PDS के माध्यम से उपभोक्ताओं को आवश्यक खाद्यान्न वितरित किया जाता है, जिससे उन्हें भोजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता।

PDS की सफलता और चुनौतियाँ:

हालांकि PDS को प्रभावी माना गया है, लेकिन यह व्यवस्था कुछ चुनौतियों का सामना भी करती है, जिनका समाधान किया जाना जरूरी है:

1.      भ्रष्टाचार और प्रणालीगत खामियाँ: PDS में कई बार अनाज की हेरफेर, राशन की दुकानों पर कालाबाजारी और वितरण में भ्रष्टाचार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इससे गरीबों तक अनाज नहीं पहुँच पाता और योजना की प्रभावशीलता में कमी आती है।

2.      अधूरी कवरेज: जबकि PDS ने अधिकांश गरीबों तक खाद्य सामग्री पहुँचाई है, फिर भी यह योजना सभी जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाती। कई ऐसे लोग हैं जो गरीबी रेखा के ठीक ऊपर होते हैं और उन्हें PDS का लाभ नहीं मिलता।

3.      सभी क्षेत्रों में समान वितरण नहीं: भारत में कुछ क्षेत्रों में PDS का कार्यान्वयन अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक प्रभावी रहा है। कुछ राज्यों और क्षेत्रों में राशन की दुकानों का वितरण और खाद्य सामग्री का वितरण सुचारू रूप से नहीं होता, जिससे लाभार्थियों को कठिनाइयाँ होती हैं।

निष्कर्ष:

PDS ने भारत में खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने केवल गरीबों तक सस्ती और पोषक खाद्य सामग्री पहुँचाई है, बल्कि खाद्य कीमतों को स्थिर करने में भी मदद की है। हालांकि इस प्रणाली में कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे भ्रष्टाचार, असमान वितरण, और अपूर्ण कवरेज, फिर भी यह अभी भी सबसे प्रभावी उपायों में से एक है जो सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनाया है। अगर इन समस्याओं को हल किया जाए, तो PDS की प्रभावशीलता और बढ़ सकती है, और यह देश में खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

Q-16  What steps are being taken to meet the continuously increasing demand of energy resources in India? Discuss with special reference to renewable and sustainable energy resources.भारत में ऊर्जा संसाधनों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उठाए गए कदम (नवीकरणीय और स्थायी ऊर्जा संसाधनों के संदर्भ में)

Answer-

भारत में ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि देश की जनसंख्या बढ़ रही है और औद्योगिकीकरण शहरीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ी से आगे बढ़ रही है। यह बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता भारत के ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौतीपूर्ण बन रही है। इस स्थिति में, भारत ने पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के साथ-साथ नवीकरणीय और स्थायी ऊर्जा संसाधनों की दिशा में कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का उद्देश्य केवल ऊर्जा संकट को हल करना है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना और भविष्य में ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना भी है।

1. नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का विस्तार

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास और जल ऊर्जा, की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इन संसाधनों का उपयोग पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और सतत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा:

भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कई पहलें शुरू की हैं। भारतीय सौर ऊर्जा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने "राष्ट्रीय सौर मिशन" की शुरुआत की। इस मिशन का उद्देश्य 2022 तक 100 गीगावाट (GW) सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करना है। 2025 तक इसे 500 GW तक बढ़ाने का लक्ष्य है। भारत में रेत, सूरज की किरण और विशाल भूमि क्षेत्र के कारण सौर ऊर्जा का पोटेंशियल काफी ज्यादा है।

  • किसान सूरज योजना: यह योजना किसानों को सौर पैनल स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इससे किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलेगा और वे सौर ऊर्जा का उपयोग करके अपने खेतों में जल आपूर्ति जैसी जरूरतों को पूरा कर सकेंगे।
  • सौर पार्क और सौर छत योजना: राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने सौर पार्कों की स्थापना के साथ-साथ घरों की छतों पर सौर पैनल लगाने के लिए वित्तीय सहायता और सब्सिडी भी प्रदान की है।

पवन ऊर्जा:

भारत पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी एक वैश्विक नेता बनने की दिशा में अग्रसर है। भारत का लक्ष्य 2022 तक 60 GW पवन ऊर्जा स्थापित करना है। तटीय क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में पवन ऊर्जा के अपार संसाधन हैं। भारत ने तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार किया है।

बायोमास और बायोगैस:

भारत ने बायोमास आधारित ऊर्जा संसाधनों के लिए भी कदम उठाए हैं। बायोमास से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कृषि अपशिष्ट, फसल अवशेष और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इससे ना केवल ऊर्जा मिलती है, बल्कि यह कृषि अपशिष्टों के प्रबंधन में भी मदद करता है।

जल ऊर्जा:

भारत में जलविद्युत परियोजनाएँ (Hydroelectric Power Plants) ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भारत में कई नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाए गए हैं। इससे देश में स्थिर और निरंतर ऊर्जा आपूर्ति होती है।

2. ऊर्जा दक्षता में सुधार (Energy Efficiency)

भारत सरकार ने ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं, ताकि ऊर्जा का अनावश्यक उपयोग कम किया जा सके और उपलब्ध ऊर्जा का अधिकतम लाभ उठाया जा सके।

ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफ़िशिएंसी (Bureau of Energy Efficiency - BEE):

भारत में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए BEE की स्थापना की गई है। यह संगठन औद्योगिक, वाणिज्यिक, और घरेलू क्षेत्रों में ऊर्जा की खपत को कम करने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्रकाश स्रोत (LED) बल्बों का उपयोग:

भारत में "उज्जवला योजना" के तहत LED बल्बों को आम लोगों तक पहुंचाना और इसके उपयोग को बढ़ावा देना, ऊर्जा की खपत में कमी लाने के लिए किया जा रहा है। इस योजना के तहत 10 करोड़ से ज्यादा LED बल्ब वितरित किए जा चुके हैं।

ऊर्जा दक्षता सुधार कार्यक्रम:

भारत में सरकारी भवनों, सार्वजनिक परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं। उदाहरण के लिए, स्मार्ट मीटरिंग, ऊर्जा-प्रभावी उपकरणों का इस्तेमाल और निर्माण में ऊर्जा दक्षता बढ़ाने की योजनाएँ बनाई गई हैं।

3. कोयला और परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता को कम करना

भारत ने पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों, जैसे कोयला और तेल पर निर्भरता कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालांकि, कोयला अभी भी भारत का प्रमुख ऊर्जा स्रोत है, लेकिन इसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

न्यूक्लियर ऊर्जा (परमाणु ऊर्जा):

भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी कदम बढ़ा रहा है। भारत सरकार ने विभिन्न परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित किया है, ताकि दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकता को पूरा किया जा सके। भारत का लक्ष्य 2030 तक परमाणु ऊर्जा से 63 GW क्षमता प्राप्त करने का है।

4. ऊर्जा उत्पादन और वितरण में सुधार (Grid and Storage Systems)

भारत में ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ उसके वितरण और संग्रहण में भी सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ स्थापित की जा रही हैं, ताकि ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके और किसी भी समय की मांग को पूरा किया जा सके।

स्मार्ट ग्रिड:

भारत में स्मार्ट ग्रिड का निर्माण किया जा रहा है, जो ऊर्जा वितरण में सुधार करता है और ऊर्जा आपूर्ति में किसी भी तरह की विघ्नन को रोकता है।

ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ:

सौर और पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है। इसलिए ऊर्जा का संग्रहण एक बड़ा मुद्दा है। इसके लिए बैटरी भंडारण प्रणालियाँ और अन्य ऊर्जा भंडारण तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

निष्कर्ष:

भारत में ऊर्जा संसाधनों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नवीकरणीय और स्थायी ऊर्जा स्रोतों के विकास के साथ-साथ ऊर्जा दक्षता में सुधार, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करना और स्मार्ट ग्रिड जैसी नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा रहा है। यह कदम केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगे, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान देंगे। इन प्रयासों के साथ भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को स्थायी रूप से पूरा कर सकता है और वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर सकता है।

Q-17 What are India's main achievements in biotechnology? How will these help in the upliftment of poor sections of society? भारत में जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में मुख्य उपलब्धियाँ और इसके माध्यम से समाज के गरीब वर्ग का उत्थान

Answer-

जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा दी है। इस क्षेत्र में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, और यह क्षेत्र केवल चिकित्सा, कृषि, और उद्योगों में प्रगति का कारण बना है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के लिए आर्थिक और सामाजिक सुधार के अवसर भी प्रदान कर रहा है। जैव प्रौद्योगिकी में भारत की कई प्रमुख उपलब्धियाँ हैं, जो केवल देश की समृद्धि में योगदान कर रही हैं, बल्कि गरीब और वंचित वर्गों के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

भारत की जैव प्रौद्योगिकी में मुख्य उपलब्धियाँ:

  1. जैविक चिकित्सा और वैक्सीनेशन (Biopharmaceuticals and Vaccines): भारत में जैविक चिकित्सा (Biopharmaceuticals) के क्षेत्र में बड़ी प्रगति हुई है। भारत विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता देश है और "भारत बायोटेक", "सीरम इंस्टीट्यूट", "जायडस कैडिला", और "बायोकॉन" जैसी कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने स्वदेशी रूप से "कोवैक्सिन" (Covaxin) और "कोविशील्ड" (Covishield) जैसे वैक्सीन्स का उत्पादन किया और इन्हें दुनिया भर में निर्यात किया।
    • गरीब वर्ग के लिए लाभ: स्वदेशी वैक्सीन्स और दवाओं की उपलब्धता ने गरीबों और दूरदराज के इलाकों में सस्ती और प्रभावी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई। इससे स्वास्थ्य सेवाओं का समान वितरण सुनिश्चित हुआ और महामारी जैसी स्थितियों में गरीबों को राहत मिली।
  2. जैविक खेती और कृषि जैव प्रौद्योगिकी (Agricultural Biotechnology): भारत में जैविक खेती और कृषि में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से महत्वपूर्ण बदलाव आया है। ट्रांसजेनिक (Genetically Modified - GM) फसलों जैसे Bt कॉटन और Bt बैंगन ने किसानों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया है। इसके अलावा, भारत में जीएम फसलें जैसे कि हाई-यील्डिंग वैरायटीज़, सूखा-प्रतिरोधी फसलें, और रोग-प्रतिरोधी फसलें विकसित की गई हैं।
    • गरीब वर्ग के लिए लाभ: कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किसानों की उपज में वृद्धि करता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। इससे विशेष रूप से छोटे और मझले किसान वर्ग को फायदा होता है, जो गरीबी रेखा के आसपास रहते हैं। इसके अलावा, सूखा प्रतिरोधी और रोग प्रतिरोधी फसलों से किसानों को प्राकृतिक आपदाओं और फसल के नुकसान से बचाव मिलता है।
  3. जैव ईंधन (Biofuels): भारत ने जैव ईंधन के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। कृषि अपशिष्ट, बायोमास और अन्य जैविक सामग्री से इथेनॉल और बायोडीजल जैसे ईंधन विकसित किए गए हैं। ये ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में मदद करते हैं।
    • गरीब वर्ग के लिए लाभ: जैव ईंधन से कृषि अपशिष्टों और जैविक कचरे का उपयोग किया जाता है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है। इसके अलावा, बायोईंधन के उत्पादन से ग्रामीण इलाकों में नई रोजगार संभावनाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे गरीबों के लिए स्थिर रोजगार प्राप्त हो सकता है।
  4. कृषि अपशिष्ट का पुन: उपयोग (Waste-to-Wealth): जैव प्रौद्योगिकी ने कृषि अपशिष्टों को पुन: उपयोग में लाने का अवसर दिया है। कृषि अपशिष्टों से बायोगैस, बायोफर्टिलाइज़र और बायोकेमिकल्स जैसे उत्पाद बनाये जा रहे हैं। इससे केवल ऊर्जा मिलती है, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में सुधार भी होता है।
    • गरीब वर्ग के लिए लाभ: यह पहल किसानों को कृषि अपशिष्टों के निपटान के बजाय उन्हें मूल्यवान संसाधनों में बदलने में मदद करती है। इससे कृषि कार्यों की लागत में कमी आती है और किसानों की आय में वृद्धि होती है। इसके अलावा, बायोफर्टिलाइज़र के उपयोग से मृदा की उर्वरता बढ़ती है, जिससे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  5. स्वास्थ्य देखभाल और जनस्वास्थ्य (Healthcare and Public Health): भारत ने जीन थेरापी, स्टेम सेल शोध और अन्य चिकित्सा क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक उपयोग किया है। इसके माध्यम से नई दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और उपचार विधियों को विकसित किया गया है।
    • गरीब वर्ग के लिए लाभ: सस्ती दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के उत्पादन से गरीब वर्ग को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल रही हैं। भारत में सस्ती और प्रभावी स्वास्थ्य सेवाओं का वितरण गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों के लिए जीवन रेखा साबित हो रहा है।

जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से गरीब वर्ग का उत्थान:

  1. आर्थिक विकास और रोजगार के अवसर: जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान, विकास और उत्पादन से छोटे किसानों, श्रमिकों और युवाओं को रोजगार मिलता है। जैव ईंधन, जैविक खेती, और जैविक चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करने के अवसरों से ग्रामीण इलाकों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं।
  2. सस्ती चिकित्सा सेवाएँ: जैव प्रौद्योगिकी ने चिकित्सा क्षेत्र में सस्ती और प्रभावी दवाओं का उत्पादन किया है, जिससे गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मिल रही हैं। सरकार ने भी कई योजनाओं के तहत सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए जैविक चिकित्सा का उपयोग किया है।
  3. खाद्य सुरक्षा: जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। उच्च पैदावार वाली फसलों से किसानों को आय में वृद्धि हुई है और उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर खाद्य सामग्री मिल रही है।
  4. संवेदनशील समुदायों का उत्थान: जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और दलित समुदायों के उत्थान में भी मदद मिली है। कृषि और चिकित्सा क्षेत्र में महिलाओं के लिए नई रोजगार और स्वरोजगार की संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं।

निष्कर्ष:

भारत ने जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, और यह प्रगति गरीबों और वंचित वर्गों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में सहायक साबित हो रही है। जैव प्रौद्योगिकी ने कृषि, स्वास्थ्य, ऊर्जा और पर्यावरणीय संरक्षण में सुधार किया है, और इसके द्वारा उत्पन्न रोजगार के अवसरों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है। यदि इन उपलब्धियों का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह भारत में गरीब वर्ग के उत्थान के लिए एक मजबूत आधार बन सकता है।

Q-18 Distinguish between natural and manmade disasters. Also, elucidate the effectiveness of the disaster management system in India. प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के बीच अंतर और भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रभावशीलता

Answer-

आपदाएँ वे घटनाएँ हैं जो किसी किसी कारण से प्राकृतिक या मानव निर्मित रूप से उत्पन्न होती हैं और मानव जीवन, संपत्ति, पर्यावरण, और सामाजिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। आपदाओं को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - प्राकृतिक आपदाएँ और मानव निर्मित आपदाएँ। भारत में इन आपदाओं से निपटने के लिए एक मजबूत आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित की गई है, जो आपदाओं के प्रभाव को कम करने और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के बीच अंतर

प्राकृतिक आपदाएँ

मानव निर्मित आपदाएँ

प्राकृतिक आपदाएँ वह घटनाएँ होती हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न होती हैं, जैसे कि भूकंप, बाढ़, सुनामी, तूफान आदि।

मानव निर्मित आपदाएँ वे घटनाएँ होती हैं जो मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे औद्योगिक दुर्घटनाएँ, रासायनिक रिसाव, तेल रिसाव, परमाणु आपदाएँ, युद्ध आदि।

ये आपदाएँ प्राकृतिक तत्वों जैसे पृथ्वी की गति, जलवायु, और मौसम से संबंधित होती हैं।

ये आपदाएँ मानव द्वारा किए गए कार्यों, जैसे कच्चे माल का अत्यधिक उपयोग, गलत निर्माण, या पर्यावरणीय नुकसान के कारण उत्पन्न होती हैं।

इन आपदाओं की पूर्व चेतावनी का कोई निश्चित तरीका नहीं होता, लेकिन कुछ मामलों में जैसे तूफान या बाढ़ के लिए मौसम विभाग द्वारा चेतावनी दी जा सकती है।

मानव निर्मित आपदाएँ आमतौर पर मानवीय लापरवाही, गलत नियोजन, या सुरक्षा मानकों का उल्लंघन होने पर घटित होती हैं।

उदाहरण: भूकंप, सुनामी, बर्फबारी, ज्वालामुखी, सूखा, बाढ़।

उदाहरण: औद्योगिक दुर्घटनाएँ, रासायनिक लीक, प्रदूषण, परमाणु आपदाएँ, युद्ध, आतंकवाद।

प्राकृतिक आपदाएँ अक्सर अप्रत्याशित और तात्कालिक होती हैं।

मानव निर्मित आपदाएँ अक्सर अधिक समय तक फैलती हैं और इनका प्रभाव दीर्घकालिक हो सकता है।

प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन और पुनर्निर्माण थोड़ा कठिन होता है, क्योंकि इनका समय और स्थान निश्चित नहीं होता।

मानव निर्मित आपदाएँ अक्सर बेहतर तैयारी और चेतावनी प्रणाली से निपट सकती हैं। लेकिन यदि लापरवाही की जाए, तो इनका प्रभाव और बढ़ सकता है।

भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रभावशीलता

भारत, जो प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाले एक प्रमुख देश है, ने आपदा प्रबंधन के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। देश में लगातार बाढ़, भूकंप, तूफान, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया जाता है, और इसके साथ ही मानवीय लापरवाही और औद्योगिक दुर्घटनाएँ भी घटित होती रहती हैं। इस संदर्भ में, भारत में आपदा प्रबंधन की प्रणाली ने काफी प्रगति की है।

भारत में आपदा प्रबंधन की प्रमुख विशेषताएँ:

  1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): 2005 में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य आपदाओं के प्रभावों को कम करना और राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ तैयार करना है। यह प्राधिकरण आपदा जोखिम घटाने और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए नीतियाँ और योजनाएँ बनाता है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं, और इसके सदस्य विभिन्न मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं।
  2. आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005): 2005 में भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया, जो आपदाओं के जोखिम को कम करने और आपदाओं से बचाव, राहत और पुनर्वास कार्यों को व्यवस्थित करने के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियाँ गठित की गई हैं।
  3. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): 2006 में, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना की गई। यह बल विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं और अन्य आपातकालीन स्थितियों के दौरान त्वरित राहत कार्यों में सहायता करता है। NDRF के पास आपदा स्थल पर त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए प्रशिक्षित कर्मी, उपकरण और तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह बल सर्च और रेस्क्यू, राहत कार्य, और पीड़ितों को प्राथमिक चिकित्सा देने के कार्य करता है।
  4. सम्पूर्ण आपदा प्रबंधन योजना (Disaster Management Plan): भारत में हर राज्य और जिला के लिए आपदा प्रबंधन योजनाएँ बनाई गई हैं। यह योजनाएँ आपदा की पूर्व चेतावनी, आपदा के दौरान बचाव कार्य, और आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों के लिए एक विस्तृत रूपरेखा प्रदान करती हैं।
  5. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems): भारत में विभिन्न आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ विकसित की गई हैं। उदाहरण के तौर पर, मौसम विभाग द्वारा समुद्री तूफान, भूकंप, और बाढ़ जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी दी जाती है, जिससे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने का समय मिल सके।
  6. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा: भारत सरकार ने आपदाओं के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए हैं। इसके अंतर्गत, आपदा प्रबंधन की रणनीतियों और प्राथमिक चिकित्सा के बारे में स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण इलाकों में प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे समाज में आपदाओं से निपटने के लिए सतर्कता और तैयारियाँ बढ़ी हैं।
  7. राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF): राष्ट्रीय आपदा राहत कोष, जो कि एक केंद्रीय निधि है, आपदाओं के समय राहत कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है। यह कोष आपदाओं के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में त्वरित सहायता प्रदान करता है।

भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रभावशीलता:

  1. सफल आपदा प्रबंधन उदाहरण: भारत ने विभिन्न आपदाओं के दौरान अपनी आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है। जैसे, 2004 की सुनामी के बाद भारत ने तटीय क्षेत्रों में त्वरित बचाव कार्य किए। इसके अलावा, 2013 के उत्तराखंड आपदा के दौरान भी त्वरित राहत कार्यों को सुनिश्चित किया गया। हाल ही में, कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने भी अपने आपदा प्रबंधन कौशल का प्रदर्शन किया।
  2. आपदाओं से बचाव में प्रभावी सुधार: आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में लगातार सुधार किया जा रहा है। जैसे, बाढ़ के समय जल्दी राहत पहुँचाने के लिए बेहतर संचार साधनों का उपयोग किया जा रहा है, और भूकंप या सुनामी की चेतावनी के लिए सटीक तकनीकें विकसित की जा रही हैं।
  3. विकसित चेतावनी और रेडियो नेटवर्क: दूरदर्शन और रेडियो नेटवर्क के माध्यम से आपदा चेतावनी का प्रसार किया जाता है, जो शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में प्रभावी रूप से पहुंचता है।

निष्कर्ष:

भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली ने कई सुधार किए हैं और आपदाओं से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है, जैसे कि ग्रामीण इलाकों में आपदा प्रबंधन की क्षमता को बढ़ाना और आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को सुधारना। कुल मिलाकर, भारत का आपदा प्रबंधन प्रणाली प्रभावी है और समय-समय पर आपदाओं से निपटने के लिए योजनाएँ और प्रक्रियाएँ बनाई जा रही हैं।

Q-19 Money laundering poses a serious threat to a country's economic sovereignty. Information and communication technology has made it more challenging." Explain धन शोधन (Money Laundering) और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का इसका प्रभाव

Answer-

धन शोधन (Money Laundering) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अवैध रूप से अर्जित धन को वैध रूप में परिवर्तित किया जाता है, ताकि उसका स्रोत छिपाया जा सके। यह एक गंभीर अपराध है, जो केवल देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि इसके माध्यम से अपराधियों और आतंकवादी समूहों को भी धन की आपूर्ति होती है, जिससे समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) ने धन शोधन को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है, क्योंकि यह अब अधिक छिपे और जटिल तरीके से हो रहा है।

धन शोधन का देश की आर्थिक संप्रभुता पर प्रभाव:

1.      आर्थिक प्रणाली में अस्थिरता: धन शोधन एक देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर बना सकता है। जब अवैध धन अर्थव्यवस्था में प्रवेश करता है, तो यह बाजार में अनावश्यक पैसा प्रवाहित करता है, जो महंगाई (inflation) और मूल्य असंतुलन (price imbalance) का कारण बन सकता है। इससे विशेष रूप से गरीब और मध्य वर्ग पर नकारात्मक असर पड़ता है, क्योंकि उनके लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।

2.      वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव: धन शोधन से वैश्विक वित्तीय प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है। जब किसी देश का वित्तीय क्षेत्र धन शोधन में लिप्त होता है, तो वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए एक संदिग्ध स्थान बन सकता है। इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास टूटता है, जिससे देश की विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

3.      राजनीतिक अस्थिरता: धन शोधन का संबंध आतंकवाद, अपराध और भ्रष्टाचार से भी जुड़ा हुआ है। इसके द्वारा अवैध धन आतंकवादी गतिविधियों, मादक पदार्थों की तस्करी, और भ्रष्टाचार में उपयोग हो सकता है, जो देश की राजनीतिक स्थिति को अस्थिर कर सकता है। इससे सरकारी नीतियाँ और विकास कार्यों में भी रुकावट आती है, जिससे देश की संप्रभुता पर खतरा उत्पन्न होता है।

4.      कर प्रणाली का दुरुपयोग: धन शोधन के माध्यम से कर से बचने की कोशिश की जाती है। जब बड़े पैमाने पर धन शोधन होता है, तो यह कर प्रणाली को कमजोर करता है। इससे सरकार को आय की कमी होती है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं और विकास कार्यों के लिए आवश्यक धन की आपूर्ति प्रभावित होती है।

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के द्वारा धन शोधन में वृद्धि:

1.      ऑनलाइन धन शोधन नेटवर्क: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने धन शोधन को अधिक जटिल और छिपा हुआ बना दिया है। अब अपराधी डिजिटल माध्यमों का उपयोग करते हुए धन शोधन कर सकते हैं, जैसे कि इंटरनेट बैंकिंग, क्रिप्टोकरेंसी, और अन्य ऑनलाइन भुगतान प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग। यह डिजिटल लेन-देन की निगरानी और विश्लेषण को और अधिक कठिन बना देता है।

2.      क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन तकनीक: क्रिप्टोकरेंसी (जैसे बिटकॉइन, एथेरियम) का उपयोग धन शोधन के लिए किया जा सकता है, क्योंकि यह मुद्रा पारंपरिक वित्तीय प्रणाली से बाहर होती है और इसमें गुमनाम लेन-देन संभव होते हैं। ब्लॉकचेन तकनीक, जो क्रिप्टोकरेंसी के संचालन के लिए उपयोग की जाती है, लेन-देन की पारदर्शिता को बढ़ाती है, लेकिन इसका उपयोग अवैध गतिविधियों को छिपाने के लिए भी किया जा सकता है। इससे धन शोधन की प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित और कठिन बनाना संभव होता है।

3.      ऑनलाइन बैंकिंग और इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम: आजकल लोग अधिकतर अपने लेन-देन ऑनलाइन करते हैं। इससे धन शोधन को छिपाना और भी आसान हो जाता है। पैसे को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए ऑनलाइन बैंकिंग और मोबाइल पेमेंट एप्लिकेशन का उपयोग किया जाता है, जिससे इन गतिविधियों की ट्रैकिंग कठिन हो जाती है। साथ ही, अपराधी फर्जी खातों का निर्माण करके और मनी ट्रांसफर नेटवर्क का उपयोग करके धन शोधन कर सकते हैं।

4.      फर्जी पहचान और पते का उपयोग: ICT के माध्यम से धन शोधन में फर्जी पहचान का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अपराधी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर नकली पहचान, पते, और कंपनियाँ बना सकते हैं, जो वित्तीय संस्थानों को धोखा देने में मदद करती हैं। इससे अवैध धन को वैध रूप में परिवर्तित करना आसान हो जाता है और इसका पता लगाना कठिन हो जाता है।

भारत में धन शोधन से निपटने के उपाय:

भारत सरकार ने धन शोधन के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं, और इसके लिए कई क़ानूनी और संस्थागत उपाय किए हैं:

1.      धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA): भारत में 2002 में धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act - PMLA) लागू किया गया। यह अधिनियम धन शोधन के अपराधों को रोकने, जांचने और दंडित करने के लिए है। इसके तहत, धन शोधन से जुड़े मामलों में संपत्ति को जब्त किया जा सकता है, और अपराधियों को दंडित किया जा सकता है।

2.      कृषि, रियल एस्टेट, और अन्य क्षेत्रों में निगरानी: भारत में विशेष रूप से रियल एस्टेट और कृषि क्षेत्रों में धन शोधन की संभावना अधिक होती है। इन क्षेत्रों में सरकार ने निगरानी तंत्र को मजबूत किया है और कड़े नियम लागू किए हैं ताकि इनका दुरुपयोग हो सके।

3.      निगमित और वित्तीय संस्थानों के कड़े नियम: वित्तीय संस्थानों को इस बात के लिए निर्देशित किया गया है कि वे संदिग्ध लेन-देन की निगरानी करें और उसकी रिपोर्ट करें। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अन्य नियामक संस्थाएँ इन नियमों का पालन सुनिश्चित करती हैं।

4.      अंतरराष्ट्रीय सहयोग: धन शोधन एक वैश्विक समस्या है, और इसलिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग बढ़ाया है। वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ भारत मिलकर धन शोधन से निपटने के उपायों पर काम कर रहा है।

निष्कर्ष:

धन शोधन केवल आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालता है, बल्कि यह एक देश की संप्रभुता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने धन शोधन को और भी जटिल और गुप्त बना दिया है, जिससे इसके समाधान के लिए नई तकनीकों और उपायों की आवश्यकता है। भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम और कड़े कानूनों के बावजूद, धन शोधन की समस्या लगातार बढ़ रही है, और इसके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए और अधिक निगरानी, जागरूकता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।

Q-20 What positive and negative changes occured due to the media revolution in India and around the world? Explain the role of media in national and international security. मीडिया क्रांति के कारण भारत और विश्व में सकारात्मक और नकारात्मक परिवर्तन और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका

Answer-

मीडिया क्रांति ने पिछले कुछ दशकों में समाज को अत्यधिक प्रभावित किया है। इस क्रांति के दौरान, सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति ने संचार के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के उदय ने समाज को नए रूप में जोड़ा है। जहां मीडिया क्रांति ने कई सकारात्मक परिवर्तन किए हैं, वहीं इसके नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए हैं। इस लेख में हम इन दोनों पहलुओं को समझेंगे और साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका पर भी चर्चा करेंगे।

मीडिया क्रांति के कारण भारत और विश्व में सकारात्मक परिवर्तन

1.      सूचना का लोकतंत्रीकरण: मीडिया क्रांति ने सूचना को अधिक सुलभ और लोकतांत्रिक बना दिया है। पहले जहां जानकारी सीमित स्रोतों तक ही सीमित रहती थी, वहीं अब इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से सूचना का प्रसार प्रत्येक व्यक्ति तक हो सकता है। यह जानकारी के अधिकार को बढ़ावा देता है और लोगों को सशक्त बनाता है। भारत में इस क्रांति के दौरान लोग सरकारी योजनाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक मुद्दों के बारे में अधिक जागरूक हुए हैं।

2.      सामाजिक सुधार और जागरूकता: मीडिया के माध्यम से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाना अब आसान हो गया है। महिलाओं के अधिकार, बाल अधिकार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे अब मीडिया में प्रमुखता से उठाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत में #MeToo आंदोलन और बाल अधिकारों के बारे में बढ़ती जागरूकता मीडिया के कारण संभव हुई है।

3.      राजनीतिक जागरूकता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी: मीडिया ने लोकतंत्र को मजबूत किया है। अब नागरिकों को चुनावी प्रक्रियाओं, राजनीतिक दलों की नीतियों, और सरकारी गतिविधियों के बारे में अधिक जानकारी मिलती है। इससे वोटर जागरूक होते हैं और चुनावों में सक्रिय भागीदारी करते हैं।

4.      वैश्विक संवाद और कनेक्टिविटी: मीडिया क्रांति ने देशों के बीच संवाद और कनेक्टिविटी को बढ़ाया है। अब वैश्विक स्तर पर घटनाएँ और मुद्दे त्वरित रूप से प्रसारित होते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सहयोग को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए, वैश्विक महामारी जैसे कोविड-19 के दौरान, दुनिया भर में संचार और सहयोग मीडिया के माध्यम से तेजी से हुआ।

5.      व्यावसायिक अवसरों का सृजन: मीडिया ने नई नौकरियों और व्यावसायिक अवसरों का निर्माण किया है। डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया मैनेजमेंट, कंटेंट क्रिएशन और मीडिया एंटरप्रेन्योरशिप के क्षेत्र में नए अवसर पैदा हुए हैं। यह एक नये उद्योग के रूप में उभरा है, जिससे अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिला है।

मीडिया क्रांति के कारण भारत और विश्व में नकारात्मक परिवर्तन

1.      सूचना का गलत उपयोग और अफवाहें: सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया पर जानकारी का सही और गलत रूप में प्रसार होता है। अफवाहें और गलत सूचना (fake news) के फैलने से समाज में भय, भ्रम और हिंसा फैल सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में कई बार साम्प्रदायिक तनाव या दंगे सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों के कारण हुए हैं।

2.      प्राइवेसी का उल्लंघन: डिजिटल मीडिया के माध्यम से व्यक्तियों की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है। व्यक्तिगत जानकारी, तस्वीरें, और वीडियो बिना अनुमति के साझा किए जा सकते हैं, जिससे लोगों की सुरक्षा और गोपनीयता खतरे में पड़ सकती है। साथ ही, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर बुरे उद्देश्यों के लिए व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल भी बढ़ा है।

3.      मनोरंजन के नाम पर संस्कृति का हनन: मीडिया ने मनोरंजन उद्योग को बहुत बढ़ावा दिया है, लेकिन कभी-कभी यह नकारात्मक प्रभाव डालता है। कभी-कभी, मीडिया पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों और विज्ञापनों में अनुशासनहीनता, अश्लीलता और सामाजिक नैतिकताओं का उल्लंघन होता है, जो युवा पीढ़ी पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

4.      मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: मीडिया, विशेष रूप से सोशल मीडिया, ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला है। लोग सोशल मीडिया पर खुद को दूसरों से तुलना करते हैं, जिससे आत्मसम्मान की कमी और मानसिक तनाव हो सकता है। इसके अलावा, अत्यधिक स्क्रीन समय भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

5.      राजनीतिक ध्रुवीकरण: मीडिया के एकतरफा या पक्षपाती दृष्टिकोण से राजनीतिक ध्रुवीकरण हो सकता है। जब मीडिया केवल एक विशेष राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करता है, तो इससे समाज में असहमति और विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका

1.      राष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका: मीडिया का देश की सुरक्षा पर गहरा प्रभाव होता है। सही समय पर और सही जानकारी का प्रसार राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय सेना की गतिविधियों, आंतरिक सुरक्षा स्थितियों, और आतंकवादी हमलों के बारे में मीडिया द्वारा दी जाने वाली जानकारी से जनता को सचेत किया जा सकता है। मीडिया सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है, जिससे वे आपातकालीन स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

2.      जागरूकता फैलाने का माध्यम: मीडिया द्वारा आतंकवाद, नक्सलवाद, और अन्य सुरक्षा खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने से आम जनता सतर्क रहती है और सुरक्षा एजेंसियों को सहयोग करती है। यह देश की सुरक्षा को मजबूत करने में सहायक होता है।

3.      अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मीडिया का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। वैश्विक सुरक्षा समस्याओं, जैसे आतंकवाद, युद्ध, और युद्ध से संबंधित घटनाओं के बारे में मीडिया की रिपोर्टिंग से देशों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा मिलता है। मीडिया वैश्विक मंच पर कूटनीतिक प्रयासों को प्रोत्साहित करने में भी मदद करता है। उदाहरण के लिए, वैश्विक युद्धों, सैन्य संघर्षों और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मीडिया ने देशों को मिलकर काम करने के लिए प्रेरित किया है।

4.      अंतरराष्ट्रीय जनमत और दबाव का निर्माण: मीडिया द्वारा वैश्विक मुद्दों को उठाने से अंतरराष्ट्रीय जनमत का निर्माण होता है, जिससे देशों पर दबाव डाला जा सकता है। जैसे कि पर्यावरणीय संकटों, मानवाधिकार उल्लंघन, और युद्ध अपराधों के खिलाफ मीडिया ने वैश्विक स्तर पर जनमत को जागरूक किया है।

निष्कर्ष:

मीडिया क्रांति ने दुनिया को एकसूत्री रूप से जोड़ने और सूचना के प्रसार को तेज़ बनाने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, इसके साथ ही यह कुछ नकारात्मक प्रभाव भी उत्पन्न कर रहा है, जैसे अफवाहों का फैलना और प्राइवेसी का उल्लंघन। फिर भी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समाज को जागरूक करता है और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में कार्य करता है। मीडिया का सही उपयोग समाज के विकास, सुरक्षा, और समृद्धि में सहायक हो सकता है।

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